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सिद्धांतरहस्य ॥१८८॥
नियंठा विचार
॥१८८॥
पूर्व कोडीनी. निग्रथनी स्थिति ज. एक समयनी अने उ. अंतर्मुनी अने स्नातकनी स्थिति ज. अंतर्मुनी |ने उ० देशे उणी पूर्व कोडीनी. ए एक वचन ( एक जीव ) आश्रयी स्थिति जाणवी. हवे बहु वचन (घणा जीव)
आश्रयी स्थिति कहे छे-पुलाको अने निग्रंथोनी ज. एक समयनी ने उ• अंतर्मु. नी. शेष चार निग्रंथोनी स्थिति मर्व कालनी. त्रीशमु अंतरद्वार-पांच निग्रंथोनुं अंतर. (एक वचन आश्रयी) ज. अंतर्मु. नु अने उ० देशेउणु अई पुद्गल परावर्तन होय. स्नातकनुं अंतर नथी. बहुवचन आश्रयी-पुलाकोनु ज. एक समय अने उ० संख्याता वर्षमुं अंतर होय. निग्रंथोनुं ज. एक समय अने उ० छ मासनु होय. शेष चार निग्रंथोन अंतर नथी. सदा महाविदेहमां होय माटे. एकत्रीशमुं समुद्घातद्वार-पुलोंकने समुद्घात त्रण. वेदनीय, कषाय अने मरणांतिक. बकुश अने प्रतिसे ने समु०, वैक्रेय ने तैजस सहित पांच. कषाय कु० ने आहारक सहित समु० छ होय अने निर्ग्रथने समु. नथी. स्नातकने एक केवलि ममुद्घात होय. बत्रीशमुं क्षेत्रद्वार-पहेला पांच निर्ग्रथो, लोकना असंख्यातमा भागे होय. स्नातक, लोकना असंख्यातमा भागने विषे होय, घणा असंख्याता भागने विष
२ उपशम गुणठाणे एक समय रहीने मरण पामे माटे. ३ एक पुलाकनी ज. स्थिति अंतर्मु० नी कही तो धणा पुलाकोनी ज. स्थिति एक समय केम घटे ? उत्तर-प्यारे पूर्व प्रतिपन्न कोइक पुलाक, अंतर्मु. ना अंत्य समयमा वर्ततो होय, त्यारे बीजो कोइक जीव पुलाक भावने पामे छे; त्यारे ते बन्ने पुलाकोनो एक समयमा सद्भाव होय माटे घणा पुलाकोनी एक स. नी स्थिति कही छे. ४ जो के पुलाक, पुलाक भावमा मरे नहि, पण मरणांतिक समुद्घात करे छे, कषाय कु. भावने प्राप्त करीने मृत्यु पामे, ५ स्नातक, शरीरस्थ अथवा दंड-कपाट करण काले लोकना असंख्यात भागवर्ती होय. मंधान-करण काले लोकना घगा भागमा होयछे, थोडाज भागना न होय अने ग्यारे आंतरा पुरे त्यारे संपूर्ण लोक व्याषी होय.