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सिद्धांतरहस्य ॥१५७॥
पद्रव्य विचार ||१५७॥
भास, वेदकता चैतन्यता, ए सब जीव-विलास ॥२॥ आत्मा, 'समता' नामना लक्षण वडे युक्त छे. वर्तमान ममये असंख्यात प्रदेशात्मक जे चैतन्य स्थिति, आत्मानी छे ते भूतकालना अनंत ममयमा हती अने अनंत भविप्यकालमां पण एज़ स्थिति रहेवानी. जेमां वध-घट थवानुं नथी ते 'समता'-समपणुं ते जेनुं लक्षण छ-ते जीव छे. वृक्षादि, पशु, पक्षी अने मनुष्य प्रमुखने विषे जे कांड रमणीयपणुं जणाय छे, अथवा जेना वडे ते सर्व | (वृक्षादि), प्रगट स्फुर्तिवाळा-सुंदरपणा सहित देखाय-छे ते रमणीयपणुं-'रमता' छे लक्षण जेनुं ते जीव पदार्थ हे. कोइपण जाणकार, पोताना अविद्यमानपणे कोइपण वस्तुने जाणे प बनवा योग्य नथी. प्रथम पोतान (आ- त्मानु) विद्यमान (अस्ति) पणुं घटे छे अने कोइपण पदार्थy ग्रहण, के त्यागादि करवामां पोतेज कारण छ. एबो जे सबंधी प्रथम रहेनारो जे पदार्थ ते जीव छ;-तेने गौण करी कोइएण कांड जाणवा मागे तो ते बनवं अशक्य छे. माटे तेज मुख्य होय तो सर्व कार्य शक्य छे. एवो जे प्रगट 'उर्ध्वता' धर्म, ते जेने विषे ले ते जीव छ. अथवा एक ममयमां नमश्रेणीए उर्ध्वगति करी मोक्ष पहोंचे एवो उता धर्म (स्वभाव) वाळो जीव छे. प्रत्यक्ष एवा जड पदार्थो अने चेतन, ते जे लक्षणे करी भिन्न पडे छे ते लक्षण जीवन 'जायकपणु' छ. कोइपण समये ज्ञायक सिवाय 'आ जीव छे आ जड छ,' एम कोइपण अनुभवी शके नहि अने ज्ञायकपणुं जीव विना बीजा कोइपण पदार्थमां संभवी शकेज नहिं. माटे जेमा 'ज्ञायकपणुं छे ते जीव छे. शब्दादि विषयोमा अथवा समाधि आदि जोग सबंधी स्थितिमां सुख संभवे छे-जणाय छे, तेनुं पृथक्रण (भिन्नभिन्न) करी जोतां छेवटे