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धर्मध्यान विचार ॥१०९॥
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रानी अभिलाषा ते सूत्र मचि. सूत्रना बे भेद १ अंग प्रविष्ट अने अंग याद्य. तेमां अंगप्रविष्ट ते १२ अंग-(१ सिद्धांत
आचारांग यावत् १२ दृष्टिवाद.) अंगवाद्यना बे भेद १ आवश्यक अने २ आवश्यक व्यतिरिक्त. आवश्यकते रहस्य
सामायिकादि छ अध्ययनरुप उत्कालिक. आवश्यक व्यतिरिक्त ते उत्तराध्ययन प्रमुखकालिक अने दशवैका॥१०९॥
कालिक वगेरे उत्कालिक सूत्र-सांभलवा-भणवानी रुचि ते सूत्र चि. ४ उवएसकइ कहेतां गीतार्थ मुनि प्रमुहै। दना उपदेश-श्रवणथी जे श्रद्धान, थाय ते उपदेश मचि. १ अज्ञानथी बांधेल कम, ज्ञानथी क्षय थाय. २ मि. थ्यावधी बांधेल कर्म, समाकितथी क्षय थाय.३ अबिरतिथी बांधेल कर्म, विरतिथी क्षय थाय.४ प्रमादथी बांधेल कर्म, अप्रमादथी क्षय थाय. ५ कपायथी बांधल कर्म, अकषायथी क्षय क्षाय. ६ अशुभ योगथी संचित करेल कर्म, शुभ योगथी क्षय थाय. ७ पांच इंद्रिय बगेरे आश्रवथी संचित कर्म, संवरथी क्षय थाय. इत्यादिक उपदेश ऋषणनी जे इच्छा ते उपदेश कचि अथवा अचगाढरूचि-(विस्ताररूचि )-पण कहीए. हवे धर्मध्यावना ४
आलंबन कहे छेः-१ बायणा कहेतां गीतार्थगुरु प्रमुख पासे स्त्र अने अर्थनी याचना लेवी ते वाचना २ Fपुच्छणा कहेतां अपूर्व अर्थ-मेळयवा माटे, सूत्र ने अर्थनो संदेह निवारवा वास्ते, जिनशासनने शोभाववाने
अर्थे, अथवा परनी परीक्षा करवा माटे, यथा योग्य विनय सहित गुर्वाथिकने पूछg ते पृच्छना. ३ परियट्टणा कहेतां पूर्व जे सत्रने अर्थ भणेला छे तेने अस्खलित (भूली न जवाय तेम) करवा माटे शुद्ध उपयोग सहित वारंवार सूत्र ने अर्थनो स्वाध्याय करवो ते परिवर्तला. ४ अणुप्पेहा कहेनां जीवादिक तत्त्व, रहस्य समजधा
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