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सिद्धांत
रहस्य ॥ १२९ ॥
LOGIS
आदि अनंत गुणसहित जे होय ते देवाधिदेव कहेवाय भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक ए चार जातिना देवो, जे देवगति नामकर्मने वेदे छे तेने भावदेव कहीए. ३ उपपात कहे छे–१ भव्य द्रव्य देवमां असंख्यात वर्षना आयुष्यवाला युगलिया ( मनुष्य अने तिर्यंचो ), अने सर्वार्थसिद्धना देवो शिवाय, शेष सर्वस्थानना जीवो उपजे २ नरदेवमा चारजातिना देवो अने पहेली नरक, ए पांच स्थानना उपजे. ३ धर्मदेमां छट्टीने सातमी नरकना जीवो, तेउका० ने वायुका० अने युगलिया - [मनुष्य-तिर्यंच] सिवाय, शेष सर्वस्थानना जीवो उपजे ४ देवाधिदेवमां पहेली, बीजी अने न्रीजी नरकसुधीना [नारक] अने किल्विधिक देव सिवाय वैमानिक देवो उपजे ५ भावदेवमां तिर्यंच पंचेंद्रिय अने संज्ञि मनुष्य, ए वे स्थानना उपजे. ४ स्थितिद्वार - १ भव्य द्रव्य देवनी स्थिति ज० अंतर्मुहुर्त अने उ० ३ पल्यनी. २ नरदेवनी ज० ७०० वर्षनी अने उ० ८४ लाख पूर्वनी. ३ धर्मदेवनी ज० अंतः अने उ० देशेडणी [८ वर्षन्यून] क्रोड पूर्वनी. देवाधिदेवनी ज० ७२ वर्ष अने उ० ८४ लाग्न पूर्वनी. ५ भावदेवनी ज० १० हजार वर्ष अने उ० ३३ सागरोपमनी. ५ ऋद्धि तथा विकुर्वणा कहे छे:--१ भव्य द्रव्यदेव [जेने वैक्रेयलब्धि होय ते] एक यावत् अनेक रूप पण विकुर्वे. २ नरदेवने वैक्रेप लब्धि अवश्य होय ते पण एक यावत् अनेक रूप करे. ३ धर्मदेव [ जेने वैक्रेय लब्धि होय ते ] एक यावत् अनेक रूप करे. ४ देवाधिदेवनी शक्ति अनंत छे पण उत्सुकाना अभावी विकुर्वणा करे नहिं. ५ भावदेवने वै० लब्धि अवश्य होय ते ज० १ २ ३ नेउ० संख्याता रूप विकुर्वे, शक्ति तो असंख्यात रुप कर
पांच देवनो
विचार
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