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संयत विचार
॥१४५॥
कारण ? महाविदेहमां हमेशां होय. छेदोप० संयतोनु अंतर, ६३ हजार वर्षनु अने उ० १८ कोडाकोटी सागरनुं. सिद्धांत- परिहा. संयतोनुं अंतर, ज० ८४ ह० वर्षतुं अने उ०१८ कोडाकोडी सानु. सूक्ष्म सं० संयतोनुं अंतर, ज.१ रहस्य
समयनु अने उ० छ मासमुं. यथा० संयतोनुं अंतर नथी । एकत्रीशमुं समुद्घात द्वार कहे छेः-सामा० ने छेदोप० ॥१४५॥
संयतने केवल समु० सिवाय छ समुद्घात होय. परिहा० संयतने पहेली ३ समु. होय. सूक्ष्म सं० संयतने एके समु० न होय. यथा संयतने १ केवल समु. होय. ॥ बत्रीशमुं क्षेत्रद्वार कहे छः-प्रथमना ४ संयतो, लोकना असंख्यातमा भागमा होय. यथा० संयत, लोकना असंख्यातमे भागे होय, घणा असंख्यात भागोमां होय अने संपूर्ण लोकमां पण होय. तेंत्रीशमुं स्पर्शनाद्वार कहे छ:-ते क्षेत्रद्वारनी जेम जाणवू।चोत्रीसमुंभावहार कहे छे:
पहेला ४ संयतो, क्षयोपशभावे होय. यथा० संयत, उपशम अथवा क्षायक भावे होय. ॥ पांत्रीशमुं परिमाण-12 ४द्वार कहे छः-प्रतिपद्यमान-(चालु वर्तमानकालमां संयतपणुं स्वीकार करनार) सामा० संयत, ते कदाच होय
अने न पण होय, जो होय तो ज०१-२-३ अने उ० पृथक्त्व हजार होय. छेदोप० ने परिहा. संयत, जो होय तो ज० १-२-३ अने उ० पृथक्त्व सो. सूक्ष्म सं० संयत, जो होय तो ज०१-२-३ अने उ०१६२ (ते १०८ क्षपक
अने ५४ उपशामक मलीने) होय. यथा संयत, सूक्ष्म संनी जेम छे. हवे पूर्व प्रतिपन्न-(भूतकालमां स्वीकारेल) ४ ते आश्रयी, ज जो होय तो सामा० संयतो. पृथक्त्व हजार क्रोड अने उ०पृथक्त्व हक्रोड छेदोप०संयतो, ज०
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