________________
सिद्धांत
रहस्य
पांच देखनो विचार ॥१३०॥
॥१३०॥
|वानी छे पण करे नहि. ६ चवण द्वार कहे छ:-१ भव्यद्रव्य देव, चवीने देव थाय. २ नरदेव- (चक्रवर्तिपदमां)
चवीने नरके जाय. ३ धर्मदेव, चवीने वैमानिक देव थाय के मोक्ष जाय.४ देवाधिदेव, मोक्षमा जाय. ५ भावदेव, धादर पृथवीकायिक, अप्का०, वनस्पतिका०, गर्भज मनुष्य अने पंचेन्द्रिय तियच ए पांचमां जाय. ७ संचिठ
णाद्वार कहे छे:-संचिठणा, स्थितिद्वार प्रमाणे छे, पण फरक एटलोज के धर्मदेवनी संचिठणा, ज०* १ समय | अने उ० देशेउणी पूर्वक्रोडनी छे. ८ अंतरद्वार+ कहे छे:-१ भव्यद्रव्यदेवनुं अंतर,-ज०१० हजारवर्षने अंतर्मुहूर्त अधिक अने उ. अनंतकालनु. २ नरदेवनुं अंतर, ज०१ सागर झाझे अने उ० देशेउणा, अर्द्धपुद्गल परावर्तन.
. नरदेव [चक्रवर्ती], धर्मदेव थाय [दीक्षा लेतो] स्वर्गमा पण जाय. भगवती-टीका. ज. १ समय अशुभ परिणामने प्राप्त थइने पुनः एक समय शुभभावे रही मरण पामे; ते आश्रयी स्थिति अने संचिठणामां फेर एटलोज के स्थिति ते तेटला काल सामान्यथी रहे, ए काल आश्रयी अने संचिठणा ते भाव आश्रयी अर्थात तेटला कालसुधी ते भावमा रहेवू एम संमवे छे. + कोइ १० १० वर्षना आयुष्यवालो देव, चवीने शुभ पृथब्यादिकमां अंतर्मुहूर्त आयुष्य भोगवी भव्य द्रव्यदेवमा उपजे ते आश्रयी अंतर्मुहूर्त अधिक कहेल छे. उ० अंतर, वनस्पतिमा उत्पन्न थवा आश्रयी. कोइक चक्री [ विषयवासनावाळो ] मरीने १ सागरने आयुष्ये नरकमां उत्पन्न थइने त्यांची पुनः नरदेव थाय, ते ज्यांसुधी चक्ररत्न | उत्पन्न न थाय यांसुधीनो अधिककाल चाणवो.. समकीती सिवाय चक्रवर्तिपणानी प्राप्ति न थाय माटे उ. अद्ध पुछ परावर्तथी अधिक अंतर न होय. धर्मदेव [साधु, सौधर्मकल्पमा पृथक्त्व पल्योपमना आयुष्ये उत्पन्न थइ, पुनः नरभव पामी आठ वर्षे चारित्र स्वीकारे ते आश्रयी जाण, आठ वर्षनो समावेश पृथक्त्व पल्यमां थाय छे. उ. अंतर माटे पूर्वनी परे जाणवु, कोइक देव [भावदेव चवीने अंतर्मुहूर्तना आयुष्यवाला तियंचपणे उत्पा थइने पुनः देवमा उपजे ते आश्रयी ज. अंतर का अने उ. अंतर पूर्ववत्.
*SA-ATRIK