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सिद्धांतरहस्य ॥१३९
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अनुत्तरवि०मां जाय अने केटलाक मोक्ष पण जाय. १ इंद्रनी पदवी, २ सामानिकनी, ३ त्रायत्रिंशकनी०, ४ लोकपालनी०, अने ५ अहमिंद्रनी पदवी ए ५मांथी आराधक केटली पदवी पामे? ते कहे छे:- सामा० ने छेदोप० ए वे सं०, पांचे पदवी पामे. परिहा० सं०, अहमिंद्र सिवाय शेष चार पदवी पामे. सूक्ष्म ने यथा० संयत, एक अहमिंद्रनी पदवी पामे. विराधक आश्रयी पांचे संयतो, ज०भवनपतिमां अने उ०सौधर्म देव०मां उपजे, पदवी एके न पामे. हवे केटली स्थितिए उत्पन्न थाय ते कहे छे:- सामा० ने छेदो० संयतनी ज० वे पल्य अने उ० ३३ सागरनी स्थिति छे. परिहारवि०नी ज० वे पल्य अने उ०१८ माग०नी, सूक्ष्मसं० ने यथाख्यातनी ज०ने उ० ३३ सागनी || चौदमुं संगमस्थान द्वार कहे छे:- सामा०, छेदोप० अने परिहा० ए ३ना असंख्याता संगमस्थानो छे, सूक्ष्म संन्ना असंख्याता संयमस्थानो छे अने ते अंतर्मुहूर्तनी स्थिति जेटला छे, यथाख्यातनुं एक संगमस्थानक छे. हवे एओनुं अल्पबहुत्व कहे छे:- सर्वथी घोडा यथाख्यातना संगमस्थान छे, तेथी सूक्ष्म संन्ना असंख्यातगुणा | तेथी परिहान्ना असंख्या०छे, तेथी सामायिक ने छेदोपन्ना असंख्यातगुणा अने परस्पर तुल्य छे। पन्नरमुं निष्कर्ष (पर्यव) द्वार कहे छे:- प्रत्येक संयतोना अनंत चारित्र पर्यवो जाणवा. सामा० संयत, सामा०छेदोप०अने परिहा० ए ३ साधे छ स्थान पतित अने उपरला (वे सूक्ष्म० ने यथा० ) थी अनंतगुण हीन छे, छेदोप० संयत, पहेला ३ साथै अनंत भाग हीन, २ असंख्यात भा०
१ यथाख्यात संयत [ उपशम श्रेणिवालो हीन, ३ संख्यात भा० हीन, ४ संख्यात गुण अधिक
पडे हे ते विराधक जाणवो. २ छ स्थान पतित ते ५ असंख्यात गुण अ०, भने ६ अनंत गुण अधिक.
%%**%*भन
संयत
विचार
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