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सिद्धांतरहस्य ॥८१॥
१ सर्वथी थोडा आहारकशरीर, २ तेथी वैक्रेय श० असंख्यात०, ३ तेथी उदारिक श० असंख्या०, ४ तेथी तैजस - कार्मण श० अनंतगुणा ने परस्पर तुल्य इति बासठियो समाप्त.
छ आरानो विचार - दश कोडाकोडी सागरोपमना छ आरा जाणवा. तेर्मा पहेलो आरो चार कोडाकोडी | सागरनो सुषम सुपम नामे अत्यंत सुखमय जाणवो. ए आराने विषे ३ गाउनुं देहमान अने ३ पल्यनुं आयुष्य. २५६ पांसली होय, धरतीनी सरसाइ शाकर सरखी जाणवी. अट्टम भक्ते आहारनी इच्छा उपजेतुवर प्रमाणे आहार करे. उतरते आरे २ गाउनुं देहमान ने २ पत्यनुं आयुष्य १२८ पांसली होय. धरतीनी सरसाइ खांड सरखी जाणवी. वज्रऋषभनाराच संघयण, समचउरंस संठाण अने स्त्रीपुरुषमां रूप-सौभाग्य घणुं होय. दश प्रकारना कल्पवृक्ष, मनोवंच्छित सुख आपे छे. ते कहे छे:- तेसिं मतंग भिंगा, तुडियंगा जोड़ दीव चित्तंगा; चित्तरसा मणिगंगा, गेहागारा अणियंगा य ॥ १ ॥ पाणं भायण पिच्छण, रविपह दीवपह कुसुम माहारो; भूषण गिह वत्थासण, कप्पदुम्मा दशविहादिति ॥ २ ॥ आ बे गाथामां १० कल्पवृक्षना नाम अने तेथी मळती सुख आपनारी वस्तुना नाम कहे छे:- तेसिं कहेतां ते युगलियाओने मतंग के० मतांग ना
पवणामां पण शरीरनुं अल्पबहुत्व कहेल हे शरीरीनुं कहेल नथी. १ आहारक शरीरनो विरह ज० १ समयनो ने उ० छ मासनो पक्षवणा-वृत्तिमां कहेल छे. आहारक शरीर ज० १-२-३ अने उ० पृथकूत्व सहस्र होय छे. २ ए वे आर्या छंद छे, ते 'क्षेत्र समास' ग्रन्थमां छे. ३ 'अणिय यरका' पण पाठ जोवामां आवेल छे पण ते पाठ योग्य संभवतो नथी.
छआरानो विचार
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