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सिद्धांतरहस्य ॥९५||
वरण, ५ घाणावरण, ६ घाणविज्ञानावरण, ७ रसावरण, ८ रसविज्ञानावरण, स्पर्शावरण, १० स्पर्शविज्ञा|नावरण, ए दश प्रकारे भोगवे. कर्मनी स्थिति कहे छः-ज्ञानावरणीय कर्मनी ज० स्थिति अंतर्मुहर्त अने उ. जीश कोडाकोडी सागरोपमनी. अबाधाकाल ज० अंतर्मु ने उ० ३ हजार वर्षनो. हवे दर्शनावरणीय कर्म छ प्रकारे बंधाय-१ दर्शनना प्रत्यनीकपणाथी, २ दर्शननानिन्हवपणाथी, ३ दर्शननी आशातनाथी, ४ दर्शनना
कर्मप्रकृति विचार ॥९ ॥
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द्रव्येद्रिय, ते नाम कर्म जन्य छे. नेत्र वगेरेमा पण एमज समजबु, १ ज्ञानावरणीयनी ज० स्थिति अंतर्मुनी ले ते दशमे गुणठाणे होय, बीजे स्थले न होय, आठमा : गुणठाणा सुधी संज्ञी पंचेंद्रियने अंत:कोडाकोडी सागरोपमधी ओछो स्थितिबंध न होय. एकेंद्रियने एक सागरना सातिया प्रण भागनो स्थितिबंध होय. घेइंद्रियने तेथी पञ्चीश गुणोबंध होय, तेइंद्रियने पचास गुणो, चौरिट्रियने सो गुणो अने असंज्ञी पंचेंद्रियने हजार गुणो बंध होय, २ जे कर्मनी जेटला सागरनी स्थिति होय तेटला सो वर्ष अबाधाकाल कहेवाय, तेटला काल सुधी कर्म उदय न आवे त्यांसुधी कर्मपुद्गलोनी रचना-उदयकाल योग्य गोठवण करे अबाधाकाल बाद अवश्य विपाकोदयके प्रदेशोदये कर्म आये. आयुष्य कर्म माटे आ प्रमाणे छे:ज्यारे जीव परभवचं आयुष्य बांधे, खारे वर्तमान भवनो जेटलौ काल बाकी होय; तेटलो काल अबाधा काल जाणवो, चवीने जीप जे गतिमा जाय त्या प्रथम समये अवश्य विपाकोदयेज आवे, प्रदेशोदये न आवे. छेवटमा अपवर्तनाकरण वडे अपवर्तन करनार अने सोपक्रमी आयुष्यवाला, प्रदेशोदयथी आयुष्य भोगवे छे; तेने आयुष्य बूढे एम कहेवाय छे. आ विषय माटे 'तत्त्वार्थ सूत्र'ना बीजा अध्यायना छेल्ला सूत्रनुं विवरण, तेमज पंचम कर्मग्रंथ अने पनवणार्नु अवलोकन करवू.