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सिद्धांतरहस्य
॥३७॥
ज० अंगु० असं० ने उ० छ गाउनी. उरपरिसर्प समु० नी ज० अंगु० असं० ने उ० प्रत्येक योजननी; गर्भजनी ज० अंगु० असं० ने उ० एक हजार योजननी. भुजपरपरिसर्प समु० नी ज० अंगु० असं० ने उ० प्रत्येक धनुप्यनी, गर्भजनी ज० अंगु० असं० ने उ० प्रत्येक गाउनी. खेचरनी समु० ने गर्भजनी ज० अंगु० असं० ने उ० प्रत्येक धनुष्यनी, उत्तर वैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० ने उ० नवसो योजननी. संघयण, समु० पांचेने छेवहु अने गर्भज पांचने छ होय. संठाण पांच समुच्छिमने हुंड अने पांच गर्भजने छ होय. कषाय चार. पण माया घणी. संज्ञा चार पण आहार संज्ञा घणी. लेश्या समु० में व्रण पहेली अने गर्भजने छ लेश्या. इंद्रिय पांच. समुद्घात, समु० ने ऋण वेदनी, कषाय ने मरणांतिक; गर्भजने पांच वैक्रेय ने तैजस समु० वधी. समु०, असंज्ञी अने गर्भजसंज्ञी होय. वेद, समु० ने एक नपुंसक अने गर्भजने ऋण वेद. पर्याप्ति, समु० ने पांच. गर्भजने छ. दृष्टि, समु० ने ये समकित दृ० ने मिथ्या दृष्टि अने गर्भज ने ऋण दृष्टि. दर्शन, समु० ने बे चक्षुद०, अचक्षुद० अने गर्भजने त्रण दर्शन प्रथम. ज्ञान, समु० ने बे तथा अज्ञान बे; गर्भजने ऋण ज्ञान ने त्रण अज्ञान. योग समु० ने चार व्यवहार वचन, औदा० औ० नो मिश्र ने कार्मणकाययोग. गर्भजने तेर, आहारकना बे नहि. उपयोग, समु०ने छ बे ज्ञान, बे अज्ञान ने बे दर्शन; गर्भजने नव. त्रण ज्ञान त्रण अज्ञान ने ऋण दर्शन. तेमज | आहार ज० ने उ० छ दिशानो ले, ते त्रण प्रकारनो ओज, रोम ने कवल; ते पण सचित्त, अचित्त ने मिश्र आहार ले. उववाय ते आवीने समु०मां पांच स्थावर, ऋण विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय ने मनुष्य ए दश दंडकना. अने
दंडक ॥३७॥