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सिद्धांत
रहस्य ॥४७॥
ते पश्नर कर्मभू० मनुष्य अने जलचर (मच्छ) ए सोळना पर्याप्तानी अने गति, दश भेदनी ते पांच मंज्ञी तिर्यंचना अपर्याप्ता ने पर्याप्तानी. दश भवनपति, सोळ वानमंतर ए छवीश जातिना देवमां आगति, एकशो इग्यार भेदनी ते एकशोने एक क्षेत्रना संज्ञी मनुष्य, पांच संज्ञी तिर्यच अने पांच असंज्ञी तिर्यंच; ए एकशो इग्यार भेदना पर्याप्तानी. गति छैतालीश भेदनी ते पूर्वोक्त चालीश भेद अने पृथ्वी, पाणी ने वनस्पति एत्रणना अपर्याप्ता ने पर्याप्ता ए छ मलीने ४६ भेदनी. पन्नर परंमाधामीमां आगति, वीश भेदनी ते पन्नर कर्मन्ना मनुष्य अने पांच संज्ञी तिर्यंचना पर्याप्तानी, गति, छैतालीश भेदनी पूर्ववत्. दश जृंभकामां आगति पचाश मे नी त्रीश अकर्मभूमि. पन्नर कर्मभू० मनुष्य अने पांच संज्ञी तिर्यंचना पर्याप्तानी. गती ४६ भेदनी पूर्ववत् ज्योतिष्क अने पहेला देवलोकमां आगति ५० भेदनी ने गति ४६ भेदनी ते कुंभकावत् बीजा देवर्मा आगति, चालीश भेदनी ते पूर्वोक्त पचाशमांथी पांच हैमवत ने पांच हैरण्यवतनी वर्जवी. गति, ४६ भेदनी पूर्ववत्. पहेला किल्वि षिकमां आगति, वीश भेदनी ते पश्नर कर्मभू० मनुष्य अने पांच संज्ञी तिर्यंच ए वीशना पर्याप्तानी. गति ४६
१ सातमी नरके १६ भेदनी स्त्री वर्जवी. २ अहिं पृथ्वी आदि त्रणे, करण अपर्याप्ता समजवा, कारण ? लब्धि अपर्याप्तानां देवो उत्पन्न थता नथी. ३ परमाधामीमां युगलियानुं उत्पन्न थवं संभवतुं नथी, कारण ? ते सरल स्वभावी अने अल्प कपायी होवाथी परमाधामीमां उत्पन्न न थाय. तेमज असंज्ञी पण तथाविध क्रूर अध्यवसाययाळा होता नथी माटे ते पण त्यां उत्पन्न न थइ शके. ४ जृंभकानुं आयुष्य एक पक्ष्योपमनुं होवाथी, तेमां अंतरद्वीपवाला अने असंज्ञी, उत्पन्न थता नथी; जृंभक देवो शिछा लोकमां बसनारा होय .
गतिआगति विचार
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