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दंडक
सिद्धांतरहस्य ॥३९॥
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एक गाउनी अने उतरतां पांचसो धनुष्यनी. चोथो आरो बेसतां पांचसो धनुष्यनी ने उतरतां मात हाथनी. पांचमो आरो बेसतां सात हाथनी ने उतरतां एक हाथनी. छट्ठो आरो बेसतां एक हाथनी ने उतरतां मुंडा हाथनी ए अवसर्पिणी काल आश्रयी अने उत्सर्पिणी काल आश्रयी एथी विपरीत जाणवी. पांच महाविदेहमा ज. अंगु० असं० अने उ० पांचसो धनुष्यनी, उत्तर वैकेय करे तो ज. अंगु० संख्या० ने उ. एक लाख योजननी झाझेरी. हैमवत-हैरण्यवतमां ज० अंगु० असं० ने उ. एक गाउनी. हरिवर्ष-रम्पकवर्षमा ज० पूर्ववत् अने उ० |बे गाउनी. देवकुरु-उत्तरकुरुमां ज० पूर्ववत् ने उ. व्रण गाउनी. छपन्न अंतर द्वीपमा ज. पूर्ववत् ने उ.
आठसो धनुष्यनी. संघयण, समुच्छिमने छेवक. युगलियाने वज्ररुषभनाराच सं० अने कर्मभूमिना गर्भज मनुष्यने छ संघयण. संठाण, ममु० ने हुंड, युगलियाने समचउरंस सं० अने कर्मभूमिना ग० मनुष्यने छ संठाण. कषाय चार पण मनुष्यने मान घणो. संज्ञा चार पण मैथुन संज्ञा घणो. लेश्या, ममु ने त्रण पहेली, युगलियाने चार अने कर्मभू. ग. मनुष्य ने छ लेश्या. इंद्रिय पांच, समुद्घात, समु० ने व्रण वे० क० ने मारणांतिक, युगलियाने पण व्रण, कर्मभू० ग. मनुष्य ने मात ममुद्घात. ममु. असंज्ञी अने गर्भज संज्ञी. | वेद, समु० ने नपुंसक, युगलियाने बे स्त्री ने पुरुष अने कर्म भू० ग. मनुष्य ने त्रण स्त्री, पुरुष ने नपुंमक. पर्याप्ति, समु० ने चार, भाषा ने मन नहिं. गर्भज ने छ पर्याप्ति. दृष्टि, ममु ने एक मिथ्या दृ० अने गर्भज ने त्रण दृष्टि. दर्शन, समु० ने अने युगलियाने बेचक्षुद० अचक्षुद० अने कर्मभू० ग० मनुष्यने चार दर्शन. ज्ञान,
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