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सिद्धांत
रहस्य
॥३२॥
छठ्ठी नरक सुधीना जीवो पर्याप्त गर्भज मनुष्य अने तिर्यंचमां जाय. २२ गति ने आगति - पहेलीथी छट्ठी नरक सुधीना जीवो, मनुष्य ने तिर्यंचनी गतिमां जाय अने एमां आवे पण ए बे गतिमांथी सातमीनरकना जीवो, एक तिर्यंचनी गतिमां जाय अने आवे मनुष्य ने तिर्यंचगतिमांथी, २३-२४. प्राण दश होय ते पांच इंद्रिय-प्राण, त्रर्ण बल, श्वासोच्छ्वास अने आयुष्य इति प्रथम दंडक समाप्त.
हवे दश भवनपतिना दश दंडक तेमां शरीर त्रण वैक्रेय, तेजस ने कार्मण. तेनी अवगाहना ज० अंगु० असं० भागनी ने उ० सात हाथनी अने उत्तर वै०नी ज०अंगु० संख्या ०ने उ० एक लाख योजननी. संघयण नथी. संठाण एक समचउरंस. कषाय चार पण लोभ घणो, संज्ञाचार पण परिग्रहसंज्ञा घणी. लेश्या चार कृष्णादि पहेली. इंद्रिय पांच समुद्घात पांच. वेदनी आदि संज्ञी - असंज्ञी वे छे. वेद वे स्त्रीवेद ने पुरुषवेद. पर्याप्ति पांच, भाषामनप० भेळी बांधे दृष्ठि त्रण. दर्शन त्रण प्रथमना. ज्ञान त्रण प्रथमना. अज्ञान त्रण. योग इग्यार-चार मनना, चार वचनना अने त्रण कायाना ते वैक्रेय, वै०नो मिश्र ने कार्मणकाय योग. उपयोग नव-त्रणज्ञान, त्रण अज्ञान ने त्रण दर्शन. तेमज आहार छए दिशानो ले, ते बे प्रकारनो ओज ने रोम; ते पण शुभ ने अचित्त. | उववाय ते आवीनें भवनपतिमां मनुष्यने तिर्यंच ए वे दंडकना उपजे स्थिति दक्षिण दिशाना असुरकुमारनी ज० दशहजार वर्षनी ने उ० एक सागरनी, तेनी देवीनी ज० दशह० वर्षनी ने उ० त्रण पल्योपमनी, तेना नव
१ मन, वचनने काय बल.
दंडक
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