Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद
नमि तीर्थश्वरं वन्दे केवलज्ञानभासुरम् ।
लोकालोक स्वभावाद्युद्योतनकदिवाकरम् ॥ १२ ॥
अन्वयार्थ— (केवल ज्ञान भासुरम्) केवल ज्ञान रूपी ज्योति से प्रकाशमान (लोकालोक स्वभाबादि) लोक और अलोक के स्वरूप प्रादि को (उद्योतन) प्रकाशित करने में (एकदिवाकरम्) एकमात्र-अद्वितीय सूर्य स्वरूप ऐसे (नमितीर्थेश्वरं वन्दे) नमिनाथ भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ।
भावार्थ-ज्ञानावरण कर्म का समूल नाश कर देने से निरावरण केवल झान जिनको प्राप्त हो चुका है तथा क्षायिक केवल ज्ञान रूपी सूर्य के तेज से जो लोका-लोक को प्रकाशित करने में सक्षम हैं ऐसे श्री नमिनाथ भगवान को, निरावरण शान की प्राप्ति के लिये प्राचार्य श्रो नमस्कार करते हैं ।।१२।।
नेमि धर्मरथेमि वन्दे प्रावृड्चनप्रभम् ।
पार्श्वनाथं नमाम्युच्चः स्वकान्त्याफवलीनिभम् ॥ १३ ॥
अन्वयार्थ--(प्रावृघनप्रभम्) वर्षाकालीन बादल के समान कान्तिवाले (धर्मरोनेमि) धर्मरूपी रथ के धुरा समान ऐसे (नेमि) श्री नेमिनाथ भगवान को (वन्दे) में नमस्कार करता हूँ तथा (स्वकारया) अपनो कान्ति से (कदली निभम) केला के समान वर्ण वाले ऐसे (पार्श्वनाथं) श्री पार्श्व प्रभु को (उच्चैः) विशेष भक्ति से (नमामि) नमस्कार करता हूँ।
मावार्थ- वर्षाकालीन सघन बादल के समान गहरे नीलवर्ण के शरीर वाले तथा कदली पत्र के समान हरितवर्ण वाले शरीर के धारी श्री पार्श्व प्रभु को प्राचार्य श्री भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं।
संस्तुवे सन्मति देवं भव्यानां सन्मतिप्रदम् ।
यं वदन्ति बुधा बोरं महावीरादिनामकम् ॥ १४ ।। अन्ययार्थ--(यं) जिनको (बुधा) बुधजन विद्वत् जन (वीरंमहावीरादिनामकम्) वीर, अतिवीर, महावीर और वर्धमान आदि नाम से (वदन्ति) सम्बोधित करते हैं ऐसे (भव्यानां सन्मतिप्रदं) भव्य जीवों को तत्व का सम्यक् अवबोध कराने वाले, उत्तम बुद्धि को देने वाले (सन्मति देवं) अन्तिम तीर्थंकर सन्मति प्रभु का (संस्तुवे) संस्तवन करता हूँ अथवा नमस्कार करता हूँ।
भावार्थ----समस्त भव्य जीवों को तत्वों का सम्यक् अवबोध कराने वाले ऐसे केवल ज्ञानादि श्रष्ठ विभूति के धारी वर्षमान भगवान को प्राचार्य श्री उन गुणों की प्राप्ति के लिये नमस्कार करते हैं ।।१४।।