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देवे. अगर माया' - कपट संयुक्त आलोचना करी हो, तो उस मुनिको दो मासका प्रायश्चित्त देना चाहिये. एक मासतो दुष्कृत स्थान सेवन कीया उसका, और एक मास जो कपट माया करी
उसका.
(२) मुनि दो मासिक प्रायश्चित्त स्थान सेवन कर माया ( कपट ) रहित आलोचना करे, उसको दो मासिक प्रायश्चित्त देना, अगर माया' (कपट) संयुक्त आलोचना करे, उसको तीन
अच्छा
१ – एक नदी के कीनारे पर निवास करनेवाला तापमने मच्छ भक्षण कीया था, उसीसे उन्होंके शरीर में बहुत व्याधि हो गइ; उस तापसके भक्त लोगों ने एक वैद्य बुलाया. वैद्यने पूछा कि - ' आपने क्या भक्षण कीया था ? ' तापस लज्जाके मारे सत्य नहीं बोला, और कहा कि 'मैंने कंदमूलका भक्षण कीया. ' वैद्यने दवाका प्रयोग किया, जिससे फायदा के बदले रोगकी अधिक वृद्धि हो गई. जब वैद्यने कहा कि – ' आप सत्य सत्य कह दीजीये, क्या भक्षण कीया था ? तापसने लज्जा छोडके कहा कि 'मैंने मच्छ भक्षण कीया था. ' तब वैद्यने उसकी दवा देके रोगचिकित्सा करी. इसी माफिक कपट कर आलोचना करने से पापकी न्यूनतांक बदले वृद्धि होती है. और माया ( कपट ) रहित आलोचना करने से पाप निर्मूल हो आत्मा निर्मल होती है. वास्ते अव्वल पाप सेवन नहीं करे, अगर मोहनीय कर्मके उदयसे हो भी जावे, तो शुद्ध अंतःकरणक भावसे आलोचना करनी चाहिये.
२ - केवलीके पास माया संयुक्त आलोचना करे, तो केवली उसे प्रायश्चित्त न दे, किन्तु के समीप आलोचना करने को कहै. कद्मस्थ आलोचना प्रथम सुनते है, उस समय प्रायश्चित्त न दे, दुसरी दफे उसी आलोचनाको और सुने, फीर प्रायश्चित न दे, तीसरी दफे ओर भी सुने, तीनों दंफकी आलोचना एक सरिखी हो तो अनुमानसे जाने कि माया रहित आलोचना है. अगर तीनों दफेर्मे फारफेर हो तो माया संयुक्त आलोचना जान एक मास मायाका और जितना प्रायश्चित्त सेवन कीया हो उतना मूल मिलाके उसको प्रायश्चित दीया जाता है.