Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 11
________________ श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान-पुष्पमाला-पुष्प नं. ६४. अथश्री शीघ्रबोध भाग २१ वा. अथ श्री व्यवहारसूत्रका संक्षिप्त सार. ( उद्देशा दश.) श्रीमद् आचारांगादि सूत्रोमें मुनियोंके आचारका प्रतिपादन कीया है. उस आचारसे पतित होनेवालोंके लीये लघु निशीथ सूत्रमें आलोचना कर, प्रायश्चित्त ले शुद्ध होना बतलाया है। आलोचना सुननेवाले तथा आलोचना करनेवाले मुनि कैसा होना चाहिये तथा आलोचना किस भावोंसे करते है, उसको कितना प्रायश्चित्त दीया जाता है, वह इस प्रथम उद्देशाद्वारे बतलाया जावेगाः (१) प्रथम उद्देशा(१) किसी मुनिने एक मासिक प्रायश्चित्त योग, दुष्कृतका स्थान सेवन कीया, उसकी आलोचना गीतार्थ आचार्य के पास निष्कपट भावसे करी हो, उस मुनिको एक मासिक प्रायश्चित्त १---मासिक प्रायश्चित स्थान देखो-लघु निशीथसूत्र. * मासिक प्रायश्चित्त-जैसे तप मासिक, छेदमासिक, प्रत्याख्यान मासिक इस्के भी लघुमासिक, गुरुमासिक-दो दो भेद है. खुलासा देखो लघुनिशीथ सूत्र,

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