Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अविवाहित, एनस् (वि०) अनपराधी,-- (वि०) । धूतं चौसर का खेल, जुआ;-धूर्तः जुएबाज, जुआरी; कृतघ्न-बी, बुद्धि (वि.) अज्ञानी । -तिलः गाड़ी में जुता हुआ बैल या सांड-पटलं मकुष्ठ (वि०)[न +कृष्+क्त ] जो जोता न गया हो। 1न्यायालय 2 कानूनी दस्तावेजों के रखने का स्थान सम-पच्च,-रोहिन् (वि.) बिना जुते खेत में पाटक: कानून का पंडित, न्यायाधीश; -पातः पासा बढ़ने वाला या पकने वाला, बहुतायत से बढ़ने वाला फेंकना; --पावः गौतम ऋषि, न्यायदर्शन के प्रवर्तक -अकृष्टपच्या इव सस्पसंपदः-कि० १२१७, रघु. या उसके अनुयायी; -भाग:--अंशः अक्षरेखा, १४१७७ । अक्षांश ।-भारः गाडीभर बोझ; -माला--सूत्रं मक्का (स्त्री०) [बक्+कन्+टाप् ] माता, मौ । रुद्राक्षमाला, हार कृतोऽक्षसूत्रप्रणयी तया करःअक्त (वि.) [अक्+क्त ] सना हुआ, अभिषिक्त, (इसका कु० ५।१२-राजः जुए का व्यसनी, पासों में प्रयोग सामान्यतः समस्त पदों में होता है जैसे 'धृताक्त') प्रधान, कलि नामक पासा; -वाटः जुआ-खाना, जुए --पता रात। की मेज; ---हृदयं जुए में पूर्ण दक्षता या निपुणता । अक्तम् [ अध्+क्च] कवच ( वर्मन)। अक्षणिक (वि० [न० त०] स्थिर, दृढ़, जो चंचल न मनन (वि.) [नास्ति क्रमो यस्य-न० ब०] अव्यवस्थित हो, जो थोड़ी देर रहने वाला न हो, दृढ़तापूर्वक जमा --मः [न क्रमः-न० त०]1 क्रम या व्यवस्था का हुआ; (ताक लगाने या टकटकी के समान)। अभाव, गड़बड़ी, अनियमितता 2 औचित्य का उल्लंघन । अक्षत (वि०) [न +क्षण+क्त-न० त०] (क) अश्यि (वि०) [नास्ति क्रिया यस्य-न० ब०] क्रिया शून्य, जिसे चोट न लगी हो त्वमनंगः कथमक्षता रतिःसुस्त-या न० त०] क्रियाशून्यता, कर्तव्य की उपेक्षा । कु. ४१९ (ख) जो टूटा न हो, सम्पूर्ण, अविभक्त-तः अङ्कर (वि.) [ न० त०] जो निर्वय न हो.-: एक 1शिव 2 कूट-फटक कर धूप में सुखाए गए चावल । यादव जो कृष्ण का मित्र और चाचा था। -ताः (बहु०) बानटूटा अनाज, सब प्रकार के मकोष (वि०) नास्ति क्रोधो यस्य-न० ब०] कोष रहित पार्मिक उत्सवों पर काम आने वाले पिछोड़े, कटे तथा -[नत०] कोष का अभाव या उसका दमत। जल से धोये हुये चावल-साक्षतपात्रहस्ता -रघु० भक्लिष्ट (वि.) [ना+क्लिश+क्त ] 1 न पका हवा, २।२१3 जी, यव-तं1 धान्य, किसी भी प्रकार का क्लेश रहित, अनथक 2. जो बिगड़ा न हो, अविकल अनाज 2 हिजड़ा (पुं०भी), ता कुमारी, ०५।१९। कन्या। सम०-योनिः (स्त्री०) वह कन्या जिसके अश् [म्वा० स्वा० पर० अक० सेट् ] (अक्षति-अक्ष्णोति, साथ संभोग न किया गया हो-मनु० ९।१७६ । अक्षित) 1 पहुँचना, 2 व्याप्त होना,पैठना 3संचित होना। असम (वि.) [न० त०] अयोग्य, असमर्थ, असहिष्णु, मक्षाः [अक्ष+अच्-अश्+स: वा]1 धुरी, पुरा 2 गाड़ी अधीर, रघु० १३।१६ मा 1 अधैर्य, ईर्ष्या, 2 क्रोध, के बीच में लगा लकड़ी का वह भाग जिसमें लोहे आवेश। या लकड़ी की वह छड़ फंसाई हुई होती है जिस अक्षय (वि.) [न.ब.] जिसका नाश न हो, अनश्वर, पर पहिया चलता है 3 गाड़ी, छकड़ा, पहिया 4 तराजू अचक-विसापनाशक्तिरिवार्थमक्षयम्-रघु०४॥१३॥ की डंडी भौमिक अक्षांश 6 चौसर, चौसर का पासा सम-तृतीया (स्त्री) वैशाखमास के शुक्लपक्ष की 7 रुद्राक्ष 8 कर्ष नामक १६ माशे की एक तोल १ बहेड़े तीज। (विभीतक) का पौधा 10 साप 11 गरुड़ 12 आत्मा ] अक्षय (विनि० त०] जो क्षय न हो सके, अविनाशा 13 ज्ञान 14 कानूनी कार्य विधि, मुकदमा 15 जन्मांध; –तपःषड्भागमक्षय्यं ददत्यारण्यका हि नः--श. -- 1 इन्द्रिय, इन्द्रिय-विषय 2 सामुद्रिक लवण 3 २।१३। नीला थोथा। सम-अप्रकोल (-कः) पुरे की कील | अक्षर (वि०) [न० त०] । अविनाशी, अनश्वर-कु. -आवपनं चौसर का तक्ता,-आवापः जुआरी ३१५०, भग० १५३१६ 2 स्थिर, दृढ़ ।- -कर्मः सम त्रिकोण में सामने की रेखा, शिव 2 विष्णु। -। (क) वर्णमाला का एक फुकाल (वि.)-ौर (वि.) जुआ खेलने में अक्षर-अक्षराणामकारोऽस्मि-भग० १०॥३३ त्र्यक्षर निपुण,-टः बांख की पुतली कोषिद (वि०) मादि । (ख) कोई एक ध्वनि, एकाक्षरं परं ब्रह्म (वि०) चौसर खेलने में कुशल-लहः जुआ मनु० २।८३ (ग) एक या अनेक वर्ण, समष्टिरूप से खेलना, चौसर खेलना--1 प्रत्यक्षज्ञान, संज्ञान, 2 भाषा-प्रतिषेधाक्षरविक्लवाभिरामम्-श० ३।२५ 2 बज हीरा-विष्णु-तत्त्वं-विचा जुना खेलने दस्तावेज, लिखावट (बहुव), 3 अविनाशी आत्मा, की कला या विद्या;पर्शक:- 1 न्यायाधीश ब्रह्म 4 पानी 5 आकाश 6 परमानन्द, मोक्ष । सम०2 जुए का अधीक्षक; विन् जुआरी, जुएबाज ;- -जर्व शब्दों का अर्थ ;-4() - (म) TANHAHR For Private and Personal Use Only

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