Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। कहो अथवा आगामी भला होने का चिन्ह कहो जो उसी जिन भारती भवन में "श्री यशस्लिक" के भी दर्शन दिखाई पड़े। मित्र महोदय ने मुझे भी बुलाकर ग्रन्धराज के दर्शन कराये । बहुत दिनों की मुरझाई हुई आशालताओं के सिञ्चन करने का मौका भी मिल गया। उसी समय ग्रन्धराज के उसी प्रकरण को निकाल कर नयन पथ में लाया लाते ही मुरझाई हुई आशा वल्लरिये हृदयानन्द जल के सम्बन्ध को पाते ही हरी भरी होगई। उसी समय अन्तरात्मा ने भी कह दिया कि यदि तुम्हें अपने भावी कल्याण के करने की इच्छा है आत्मा को नरकों के दुःखों से अछूता रखता चाहते हो तो इसी ग्रंथ शिरोमाण की सेवा स्वीकार करो। वस! उसी दिन से प्राचीन विषयों पर दिनों दिन श्रद्धान बढ़ने लगा। पश्चात् और भी अनेक महर्षियों के ग्रन्थों में भी ये विषय देखने में आये । इसी कारण एक दिन यह इच्छा हुई कि किसी तरह इन प्राचीन विषयों को प्रकाशित करना चाहिये जिससे लोगों को यह मालूम हो जाय कि जैनमत में जितनी बाते हैं वे निर्दोष हैं। इसी अभिप्राय से इस पुस्तक को लिखी है। वस यही मेरी कथा और पुस्तक के अवतरण का कारण है। पाठकवृन्द ! अब आप ही अपनी निष्पक्ष छुद्धि से यह बात मुझे समझा दे कि मैंने प्राचीन मुनियों के कथनानुसार अपने श्रद्धान को पलटा उसमें क्या बुरा काम किया ? और यदि सत्य बात के स्वीकार करने को भी बुरा समझ लिया जाय तोक्यो लोगों को बुरे कामों के छोड़ने का उपदेश दिया जाता है ? शास्त्रों में महाराज विभीषण को क्यों श्लाघनीय बताये? एक तरह से तो इन्हें कुल को रसातल में पहुचाने के प्रधान कारण For Private And Personal Use Only

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