Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - संशयतिमिरप्रदीप। यही दशा मेरी भी हुई है मैं पहले उसी मार्ग का अनुयायी था जिस में गन्ध लेपनादि विषयों का निषेध है। और इसी पर विश्वास भी था। परन्तु समाज में दो सम्प्रदायों को देखकर छोटी अवस्था से ही यह बुद्धि रहती थी कि यथार्थ बात क्या है ? इसी के अनुसार सत्यबात के निर्णय के लिये यथासामर्थ्य प्रयत्न भी करता रहा । इसी अवसर में जैनमित्र में पञ्चामृताभिषेक विषय पर शास्त्रार्थ चल पड़ा। उसी में यह बात भी किसी विद्वान के लेख में देखने में आई कि “भगवत्सोमदेव महाराज ने यशस्तिलक में इस विषय को अच्छी तरह लिखा है जो विक्रम सम्मत (८२१) के समय में इस आरत भारत के तिलक हुवे हैं। इस बात के देखने से उसी समय दिल में यह बात समागई कि उक्त ग्रन्थ को देखना चाहिये क्योंकि इसके कर्ता प्राचीन हैं और यह उस समय में बना हुआ है जिस समय भट्टारकादिको की चर्चा का शेष भी नहीं था। यदि इस ग्रन्थ में यह बात मिल जावेगी तो अवश्य उसी के अनुसार अपने श्रद्धान को काम में लाना चाहिये। इस तरह का निश्चय कर लिया था। परन्तु उस समय यह कंटक आकर उपस्थित हुआ कि इस ग्रन्थ को कैसे प्राप्त करना चाहिये । न उस वक्त उक्त ग्रन्थ मुद्रित ही हो चुका था जो झटिति मंगाकर चित्त की शान्ति कर ली जाती। इसी से सब उपायों को छोड़ कर सन्तोषाचल की कन्दरा का आश्रय लेना पड़ा था। किसी समय मैं अपने मकान पर किसी काम को कर रहा था उन्हीं दिनों में मेरे मकान के पास के जिनालय में कितने मित्रवर्ग प्राचीन पुस्तकालय की सम्हाल कर रहे थे। इसी अवसर में अपने जननान्तर के शुभ कर्म के उदय से For Private And Personal Use Only

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