Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। में रख कर कितने और भी विषय इसी में मिला दिये हैं। पाठक इसे ही द्वितीय भाग समझे। यदि हो सका तो फिर कभी उन्हीं विषयों को लिखकर पृथक रूप से प्रकाशित करेंगे जिनको दूसरे भाग में प्रकाशित करने का विचार किया था। पहले संस्करण में जिनका यह कहना था कि इस में कटाक्ष विशेष किये गये हैं यद्यपि इसे हम स्वीकार करते हैं परन्तु साथ ही यह भी कहे देते हैं कि ये आक्षेप उन आक्षेपो की शतांश कला को भी स्पर्श नहीं कर सकते हैं जो आक्षेप बड़े २ प्राचीन महर्षियों के ऊपर किये जाते हैं । अस्तु, ___ चन्द्रमा के ऊपर धूल फेंकने से चन्द्रमा की कुछ हानि नहीं है किन्तु वही धूल अपने ऊपर पड़कर अपनी ही हानि की कारण बनेगी। जो हो उन के दूर करने का भी अब की बार जहां तक हो सका बहुत कुछ प्रयत्न किया गया है आशा है कि पाठक महोदय पुस्तक को पढ़कर इसका विचार करेंगे। इसी प्रस्तावना के आगे "मेरा वक्तव्य" शीर्षक लेख लिखा गया है वह स्वतंत्र लेख है उससे पुस्तक का कुछ भी सम्बन्ध नहीं है शायद उसमें कहीं पर लेखनी में कठोरता आगई हो तो पाठक उसे मेरा ही दोष कहें ग्रन्थ को लांछन न लगावे । उस लेख में यह क्यों किया गया है इसका कारण लेख में अपने आप समुद्भूत हो जायगा। स्थिति को देखकर वह भी बुरा नहीं कहा जा सकता । तो भी हम क्षमा की प्रार्थना करते हैं। जाति का सेवक, उदयलाल जैन काशलीवाल। For Private And Personal Use Only

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