Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप । यह पुस्तक निष्पक्ष बुद्धि वालो के लिये सुमार्ग के बताने को आदर्श होगी। इसलिये यदि कोई बात तेरापंथ मंडली के अनुकूल न हो तो वे महाशय यह न समझें कि यह विषय हमारे विरुद्ध और वीसपंथ के सन्तोष कराने के लिये है। अथवा इसी प्रकार कोई बात वीसपंथ सम्प्रदाय के विरुद्ध हो तो वे भी उसका उल्टा अर्थ न करें। किन्तु निष्पक्ष बुद्धि से उभय सम्प्रदाय के महाशय उस पर विचार करें। यही मेरी सविनय प्रार्थना है। मेरा अभिप्राय किसी से द्वेष वा प्रेम कर ने का नहीं है जो एक को प्रसन्न और एक को नाखुश करने का प्रयत्न करूँ, किन्तु दोनों पर समबुद्धि है। इसका मतलब यह नहीं कहा जा सकेगा कि इससे मैं प्राचीन महर्षियो के विरुद्ध लिखने का साहस करूँगा? उनके बचनो पर ती मेरा दृढ़ विश्वास है वे किसी हालत में अलीक नहीं हो सकते। क्योंकि विनथे मुनिवाक्येऽपि प्रामाण्यं वचने कुतः पाठक महाशय ! इस ग्रन्थ के लिखते समय पक्षपात बुद्धि को कोसों दूर रक्खी है और इसी सिद्धान्त पर हमारा पूर्ण भरोसा है। इसलिये यदि कोई बात किसी सजन महाशय की समझ में न आवे और यदि वे उसे शास्त्र तथा युक्तियों के द्वारा असिद्ध ठहराने का प्रयत्न करेंगे और वह मेरी समझ मै ठीक २ आ जावेगी तो मैं उसे फौरन छोड़ दूंगा जिस पर पहले मेरा विश्वास था। यह बात में अपने निष्पक्ष हृदय से कहता हूं। अन्यथा मेरा कहना है कि जिस सुमार्ग पर बड़े २ विद्वानों का सिद्धान्त है उसी का अनुकरण करना चाहिये । यदि कोई यह कई कि जो यह बात कही गई है कि इस पुस्तक के लिखते समय For Private And Personal Use Only

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