Book Title: Sankshipta Jain Mahabharat
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 15
________________ कुरूवंश, हरिवंश व यदुवंश की उत्पत्ति __ हम इस पुस्तक का प्रारंभ पांडव पुराण में वर्णित कुछ उद्धरणों से करते हैं। पांडव पुराण के प्रारंभ में उल्लेख है कि कथायें 4 प्रकार की होती हैं1. जिस कथा के श्रवण से रागभाव कम हों, उसे संवेगनी कथा कहते हैं। 2. जिस कथा में धर्म का वर्णन हो, धर्म के फल का वर्णन हो, तथा जिसमें वैराग्य का भी वर्णन हो, उस . कथा को निर्वेगनी कथा कहते हैं। 3. उचित तर्क-वितर्कों द्वारा मिथ्या-मतों के खंडन करने वाली कथा को आक्षेपनी कथा कहते हैं। 4. जिस कथा के कहने व सुनने मात्र से ज्ञान का विकास हो, जिस कथा में रत्नत्रय धर्म का समर्थन किया गया हो तथा जिसमें मिथ्यात्व का खंडन हो; ऐसी कथाओं को विक्षेपणी कथा के नाम से जाना जाता है। पुराण प्रारंभ में लिखता है कि जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के आर्य खंड के विदेह क्षेत्र में कुंडलपुर नगर में नाथ वंश के नरेश सिद्धार्थ का शासन था। उनकी महारानी का नाम त्रिशला देवी था। इन्हें प्रियकारिणी के नाम से भी संबोधित किया जाता था। त्रिशला देवी के गर्भ में स्वर्ग से चयकर जब तीर्थंकर महावीर स्वामी पधारे; तो स्वर्ग से आई 56 देव कुमारियां उनकी सेवा करती थीं। गर्भ धारण करने पर माता त्रिशला ने सुन्दर 16 स्वप्न देखे थे। उन स्वप्नों का फल अपने भर्तार से जानकर वे अत्यन्त प्रसन्न हईं थीं। इन्हीं के गर्भ से चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन तीन ज्ञान के धारी तीर्थंकर बालक महावीर स्वामी ने जन्म लिया था। दूसरे दिन चतुर्दशी को इन्द्र-इन्द्राणी देवताओं के साथ तीर्थंकर बालक को सुमेरू पर्वत पर अभिषेक हेतु ले गये। जहां सभी ने तीर्थंकर बालक का जन्माभिषेक उत्सव बड़े ही धूमधाम से संक्षिप्त जैन महाभारत - 13

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