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समवायांग सूत्र
नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। इस रत्नप्रभा नरक में तेरहवें पाथड़े के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम कही गई है। दूसरी नरक में नैरयिकों की जघन्य स्थिति एक सागरोपम कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। असुरकुमार देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम से कुछ अधिक कही गई है। असुरकुमारों के इन्द्र अर्थात् चमरेन्द्र और बलीन्द्र को छोड़ कर बाकी भवनपति देवों में से कितनेक देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियों में से कितनेक अर्थात् हेमवय हिरण्णवय क्षेत्रों में उत्पन्न हुए तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज संज्ञी मनुष्यों में से कितनेक अर्थात् हेमवय हिरण्णवय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले गर्भज संज्ञी मनुष्यों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। वाणव्यन्तर देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम कही गई है। ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम कही गई है। पहले सौधर्म देवलोक में देव और देवियों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम कही गई है। प्रथम सौधर्म देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति एक सागरोपम कही गई है। दूसरे ईशान देवलोक में देवों की और देवियों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम से अधिक कही गई है। दूसरे ईशान देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति एक सागरोपम कही गई है। जो देव दूसरे ईशान देवलोक के सातवें पाथड़े के सागर सुसागर सागरकान्त भव मनु मानुष्योत्तर और लोक हित इन आठ विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम कही गई है। वे देव एक अर्द्धमास अर्थात् एक पक्ष (पन्द्रह दिन का एक पक्ष होता है।) से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाहरी श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को एक हजार वर्ष से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। उनमें से कितनेक भवसिद्धिक यानी भव्य जीव एक मनुष्य भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, कर्म विकारों से रहित होकर शीतलीभूत होंगे और सब दुःखों का अन्त करेंगे।
विवेचन - प्रश्न - प्रायः करके, थोकड़ा वाले पूछा करते हैं कि - चार लाख कौन से हैं ?
उत्तर - यहाँ बतलाया गया है कि - जम्बूद्वीप, सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नरकेन्द्र, सर्वार्थसिद्ध और पहले देवलोक का पालक नाम का यान विमान, ये चार पदार्थ एक लाख योजन के लम्बे और एक लाख योजन के चौड़े हैं। इनकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सो सत्ताईस योजन तीन गाउ एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इन चारों में जो विशेषता है वह ठाणाङ्ग सूत्र के तीसरे ठाणे के पहले उद्देशक में इस
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