Book Title: Sammaisuttam
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 23
________________ 52 भूलणिमेणं' पज्जवणयस्स उज्जसुयवयणविच्छेदो' । तस्स उ सद्दाईआ' साहपसाहा सुहुमभेया ||5| सम्म मूलनिमानं (स्थान) पर्यवनयस्य ऋजुसूत्रवचनविच्छेदः । तस्य तु शब्दादिकाः शाखाप्रशाखाः सूक्ष्मभेदाः ||5|| शब्दार्थ - उज्जुसुयवयणविच्छेदो - ऋजुसूत्रनय (का) वचन व्यवहार ( ही ) ; पज्जवणयस्स– पर्यायार्थिक नय का मूलणिमेणं-मूल स्थान (है), सद्दाईआ - शब्दादिक ( शब्दनय, समभिरूदनय, एवंभूतनय); उ-तो; तस्य उस (ऋजुसूत्रनय) के; साहपसाहा – शाखा प्रशाखा (रूप), सहुमभेया- सूक्ष्म भेद ( हैं ) । पर्यायार्थिकजय का मूल : भावार्थ- पर्यायार्थिकनय का मूल आधार ऋजुसूत्रनय है । ऋजुसूत्रनय के अनुसार एक समयवर्ती पदार्थ की अवस्था ही पर्याय है। इसलिए यह नय केवल वर्तमान पर्याय का विषय बनता है। भूतकालिक तथा भविष्यत्कालीन पर्याय का चचन- व्यवहार करने हेतु यह नय समर्थ नहीं है। शब्दनय, समभिरूदनय और एवंभूतनय - ये सभी सूक्ष्म भेद एक ऋजुसूत्रनय रूपी वृक्ष की शाखा प्रशाखाएँ हैं। जिस प्रकार नैगमनय की अपेक्षा संग्रहनय का विषय सूक्ष्म है, वैसे ही संग्रहनय से व्यवहारनय में, व्यवहारनय से ऋजुनय में ऋजुसूत्रनय से शब्दनय में, शब्दनय से समभिरूढ़नय में और उसकी अपेक्षा एवंभूतनय में विजय की सूक्ष्मता है। णामं ठवणा दविए त्ति एस दव्वद्वियस्स णिक्खेबो' । भावो उ पज्जवद्वियस्स परूवणा एस परमत्यो ॥6॥ नाम - स्थापना- द्रव्यमिति एष द्रव्यार्थिकस्य निक्षेपः । भावस्तु पर्यायार्थिकस्य प्ररूपणा एष परमार्थः ||6|| F शब्दार्थ - णामं - नाम ठेवणा- स्थापना; दविए - द्रव्य (निक्षेप ) ति - इस प्रकार एस - यह (ये); (तीनों निक्षेप) दव्वष्ट्रियस्स- द्रव्यार्थिक (नय) के णिक्खेवी - निक्षेप ( हैं ); उ - किन्तु भावो भाव (निक्षेप ) पज्जवष्वियस्स- पर्यायार्थिक (नय) की; परूवणा - प्ररूपणा ( कथनी ) : ( होने से ) एस- यह परमत्थो - परमार्थ ( है ) । निमाण | 1. प्र 'मूल 2. बि बियो । १. स" सवाईया । 4. तिएसु । 5. स किखेओ । 5. अॅज्जवट्रिअपरूवणा ।

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