Book Title: Sammaisuttam
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ सम्मइसुत्तं 11g जह दससु दसगुणम्मि य एगम्मि दसत्तणं समं चेव । अहियाम्म वि' गुणसद्दे तहेय' एयं पि' दट्ठव्यं ।। 15 ।। तथा दशसु दशगुणे चैकस्मिन् दशत्वं समें चैव । अधिकेऽपि गुणशब्दे तथैवैतदपि द्रष्टव्यम् ।। 15।। शब्दार्थ-जह-जिस प्रकार, गुणसद्दे-गुण शब्द में (क) अहियम्मि-अधिक (होने) पर वि-भी; दससु-दसों (दश वस्तुओं) में दसगुणम्मि-दसगुनी में (वस्तुओं में); व-और एगम्मि-एक (वस्तु) में; दसत्तणं-दशपना; सम-समान; चेव-ही (होता है) तहेय-उसी प्रकार; एयं-यह; पि-भी; दट्ठव-समझना चाहिए। 'गुग' परस्पर हीनाधिकता का बोधक : भावार्थ-एक गुणी, दशगुणी कृष्णपर्याय आदि शब्दों में 'गुण' शब्द का प्रयोग वस्तुओं के परस्पर वर्ण, रस आदि की न्यूनता या अधिकता का बोधक है। जिस प्रकार देशमुनी दश यस्तुओं में तथा दशगुनी एक वस्तु में दशपना समान होता है, वैसे ही यहाँ भी समझना चाहिए। इस प्रकार 'गुण' शब्द हीनाधिक परिमाण का बोध कराता है। 'गुण' का अर्थ है-गुना; जैसे कि दुगना, तिगुना चौगुना आदि। इसी प्रकार एक गुना, दुगना कम आदि। इन सबमें 'गुण' शब्द कम-अधिक परिमाण का वाचक है। एगंतपक्खवाओ' जो पुण' दव्वगुणजाइभेयम्मि। अह पुव्वपडिक्कुट्ठो' उयाहरणमैत्तमेयं तु ॥16॥ एकान्तपक्षवादो वः पुनः द्रव्यगुणजातिभेदे । अथ पूर्वप्रतिक्रुष्ट उदाहरणमात्रमेतत्तु ||16|| शब्दार्थ-अह-और दच्वगुणजाइभेयम्मि-द्रव्य (तथा) गुण (की) जाति (गत) भेद में; जो-जो; पुण-फिर; एगतपक्खवाओ-एकान्त (रूप से ) पक्षपात (है उसे); 1. अ 'वि' के स्थान पर 'अ'। 2. ब तहेय।। ३. द" वि। 4. अ'एयंतपक्खयाओ। 5. अ"उण। 6. ब" दन्दगुणजाइमपणाम। 7. व पुष्यं पडिकुट्टो। ४. बति।

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131