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सम्मइसुतं
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मंगल कामना : भावार्थ-आचार्य सिद्धसेन इस गाथा में अन्त्य मंगल-कामना करते हुए कहते हैं कि जिनेन्द्रदेव के वचन मिथ्यादर्शनों के समूह का मथन करने वाले तथा अमृत-सार से युक्त हैं। दही को मथ कर उस का सार ग्रहण किया जाता है। मुमुक्षुओं द्वारा उपासित तथा सरलता से समझ में आने वाले जिनेन्द्र भगवान के वचन जगत का कल्याण करें। यास्तव में जैनधर्म को तटस्थ व्यक्ति ही समझ सकता है। जो पूर्वाग्रहों तथा अपनी-अपनी मान्यताओं से धारणाबद्ध है, यह इस धर्म का मर्म नहीं समझ सकता।
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