Book Title: Sammaisuttam
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ 143 नित्य या सर्वथा अनित्य मानते हैं, वे प्रमाण कैसे हो सकते हैं? इसी प्रकार किसी को नित्य और किसी को अनित्य मानना भी प्रामाणिक नहीं है, क्योंकि प्रत्येक द्रव्य में त्रिकाल गुण-धर्म शक्ति विद्यमान रहती है। अतः वह द्रव्य की अपेक्षा से नित्य है और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य है। जे संतवायदोसे सक्कोलूया भणति' संखाणं। संखा य असव्वाए तेसिं सब्वे वि ते सच्चा 1501 यान्सद्वाददोषान शाक्योलूक्या भणन्ति साख्यानाम साङ्ख्याश्च असद्वाद तेषां सर्वेऽपि ते सत्यानि 1501 शब्दार्थ-सक्कोलूया-बौद्ध (एव) वैशेषिक; जे-जिन; संतवायदोसे-सत् (काय) वादी दोषों को; संखाणं-सांख्य के (सिद्धान्त पर); भणति-कहते हैं। लेसिं-उनके य-और; संखा सांख्या असव्वाए --असद्वाद (पक्ष) में (दोष प्रकट करते हैं); ते-वे; सव्ये वि-सभी (दोष); सच्चा-सच्चे (है)। दे सभी सदोष : भावार्थ--बौद्ध और वैशेषिक सांख्यों के सवाद पक्ष में जो दोष बताते हैं, वे सब सत्य हैं। इसी प्रकार-सांख्य लोग बौद्ध तथा वैशेषिक के असवाद में जो दोष लगाते हैं, वे भी सच्चे हैं। सांख्य सत्कार्यवादी हैं। उसकी दृष्टि में घट पर्याय कोई नवीन उत्पन्न नहीं होती। वह तो स्वयं कारण रूप मिट्टी में पहले से ही छिपी हुई है, निमित्त कारण पा कर प्रकट हो जाती है। परन्तु असत् कार्यवादी बौद्ध तथा वैशेषिक ऐसा कहते हैं कि आप की मान्यता सम्यक् मानी जाए, तो कार्य को प्रकट करने के लिए कारण की आवश्यकता क्या है? क्योंकि कार्य तो अपने कारण में विद्यमान है। यदि यह कहा जाए कि कारण से उसका आविर्भाव होता है, तो सत्कार्यवाद समाप्त हो जाता है; क्योंकि उत्पत्ति का दूसरा नाम ही आविर्भाव है। मिट्टी में घड़े की अवस्था छिपी हुई थी। निमित्त कारण से वह अवस्था प्रकट हो जाती है। इसी अवस्था का नाम उत्पत्ति है। इस अवस्था में क्या विशेषता है ? यह समझाते हुए कहते हैं 1. ब" वयति ()

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131