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सम्मइसुत्त दब्बत्यंतरभूया मुत्तामुत्ता य' ते गुणा होज्जा'। जइ मुत्ता परमाणु पत्थि अमुत्तेसु अग्गहणं ॥24॥ द्रव्यार्थान्तरभूत भूतामूश्चि तं गुणा भवेयुः । यदि मूर्ताः परमाणवो नास्त्यमूर्तेष्वग्रहणम् ॥24||
शब्दार्थ-दव्वत्यंतरभूया-द्रव्यान्तर (को) प्राप्त; ते-वे; गुणा-गुण; मुता-मूर्त (या) अमूर्त: य--और; होज्जा होंगे; जइ-यदि; मुत्ता-मूर्त (हों तो कोई) परमाणुः णत्यिनहीं है; (होगा) अमुत्तेसु-अमूर्त होने पर अग्गहणं-ग्रहण नहीं (परमाणु होंगे)।
गुणः मूर्त, अमूर्त ? भावार्थ-भेदवादी को समझाते हुए कहते हैं कि यदि पर्यायों को द्रव्य से भिन्न माना जाए, तो वे गुण रूप पर्यायें द्रव्य में भिन्न रह कर मूर्त होंगी या अमूर्त ? यदि आप यह कहते हैं कि द्रव्व की पर्यायें द्रव्य से सर्वथा भिन्न रहेंगी, तो ऐसी स्थिति में परमाणु का अस्तित्व ही सिद्ध नहीं होगा। क्योंकि परमाणु इन्द्रिय-ग्राह्य नहीं है। उनका अस्तित्व तो स्वणुकादि पयायों से ही जाना जाता है। जैसे ये पर्यायें अन्य द्रव्य से भिन्न हैं तथा द्रव्य के अस्तित्व को ज्ञापक नहीं हैं, उसी प्रकार परमाणु से मिन्न ह्यणुकादि पर्यायें भी परमाणु की झापक कैसे हो सकती हैं? इसी प्रकार अन्यथानुपपत्ति रूप अनुमान से परमाणुओं का अस्तित्व सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि जो परमाणु हैं उनमें घट, पट आदि कार्य से भिन्न उपपत्ति नहीं देखी जाती है। इस अनुमान से उन दोनों में कथंचित् अभिन्नता ही सिद्ध होती है। अतएव सभी प्रकार के दोषों से बचने के लिए द्रव्य तथा पर्यायों को परस्पर कथंचित् सापेक्ष एवं अभिन्न मानना चाहिये।
सीसमईविप्फारणमैत्तेत्योयं को समुल्लावो। इहरा कहामुहं चेव पत्यि एवं ससमयम्मि ॥25॥ शिष्यमतिविस्फारणमात्रार्थोऽयं कृतः समुल्लापः ।
इतरथा कथामुखं चैव नास्त्येवं स्वसमये ॥25॥ शब्दार्थ-सीसमई-शिष्य (जनों की) बुद्धि (को); विप्फारण-विकसित करने
1. ब" व। 2. होणा। 9. ब नत्यि अ सुत्ते सुअग्गहणं। 4. ब. मित्यारणमित्तत्थोयं । 5. दयेय।