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सम्मसुतं
मत्तत्योय- - मात्र प्रयोजन (से) यह समुल्लाको प्रबन्ध (कथा - बार्ता); कओ - किया गया ( है ) : इहरा - अन्यथा ससमयम्मि-जिन - शासन में एवं - इस प्रकार (की); कहामुहंई-कथा आरम्भ ( का अवकाश); घेव-- ही णत्थि - नहीं ( है ) |
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प्रस्तुत वार्ता का प्रयोजन :
भावार्थ - यहाँ पर गुण गुणी के भेद तथा अभेद विषयक जो विचार प्रस्तुत किया गया है, वह सब शिष्यों की बुद्धि को विकसित करने के उद्देश्य से ही किया गया है। वास्तव में जिनेन्द्र भगवान् के शासन में भेद या अभेद किसी एक प्रकार की कथा-वार्ता नहीं है। जैन शासन अनेकान्तात्मक है। अतः इसमें एकान्त रूप से भेदवाद तथा एकान्त रूप से अभेदवाद की स्थिति नहीं है।
गवि अस्थि अण्णवाओ ण वि तव्वाओं जिणोवएसम्म । तं चैव य मण्णता अमण्णता ण याणंति ।। 26 ।। नाप्यस्त्यन्यवादो नाऽपि तदवादी जिनोपदेशे । तच्चैव यो भन्यमानाऽमन्यमाना (सन् न जानन्ति ||26||
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शब्दार्थ - जिगोवएसम्म - जिन ( भगवान् के) उपदेश में ण वि नहीं (ही); अण्णवाओ - अन्य भेदवाद (मत): अस्थि- है; ण वि - नहीं (ही); तव्वाओ - वह (अभेद) बाद: तं - उसे (भेद या अभेद को); चैव ही य- जो मण्णंता - मानने वाले हैं वे); अमण्णता- नहीं मानते हुए ण नहीं (कुछ भी)
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यागति - जानते हैं।
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और फिरभावार्थ और फिर, जिनेन्द्र भगवान् के उपदेश में न तो सर्वथा भेदवाद है और न सर्वथा अभेदवाद है। जो इन दोनों में से भेदवाद या अभेदवाद को मानने वाले हैं, वे भेद या अभेद को मानते हुए भी जिनशासन को नहीं मानते हैं।
कहने का अभिप्राय यह है कि अकेले भेदवाद का या अकेले अभेदवाद का उपदेश जिनवाणी नहीं है। जिनवाणी में दोनों का उपदेश मिलता हैं। एक ही या निरपेक्ष रूप से भेद या अभेद को मानना एकान्त है; किन्तु जिनवाणी अनेकान्त रूप है।
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भयणा विहु भइयव्वा जह भयणा' भयइ सव्वदव्बाई । एवं भयणा नियमो वि होइ समयाविरोहेण ॥27॥
1. प्रकाशित 'अणवादी व अन्नवा
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ब" जह भ्रयणों ।
3.
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