Book Title: Sammaisuttam
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 77
________________ 106 सम्मइसुत्तं तस्मादन्यो जीवः अन्ये ज्ञानादिपर्याया तस्य । मैलामिकादिलक्षाविशेषतः क्षेत्रिवियन्ति ॥ शब्दार्थ-सम्हा-इस कारण; उपसमियाई-उपशप आदि; लक्खण-लक्षण (की); विसेसओ-भिन्नता से; जीवो-जीव अपणो-अन्य (भिन्न है और); तस्स-उस की णाणाइपज्जया-ज्ञान आदि पर्यायें; अण्णे-भिन्न (है) (ऐसा); केइ-कुछ; इच्छति-कहते हैं। : गुगी से गुण भिन्न है? : भावार्थ-इस प्रकार उपशम (भावों) आदि लक्षणों की भिन्नता से जीव भिन्न है और उसकी ज्ञान आदि पर्यायें भिन्न हैं। ऐसा किसी का मत है कि जहाँ जीव के उपशम आदि भाव बताये हैं, वहाँ केवलज्ञान, केवलदर्शन को क्षायिक भाव कहा गया है, किन्तु इसके साथ ही जीव की गणना पारिणामिक भाव में की गई है। अतएव इन दोनों में विरोध है। एक में ही परस्पर दो बिरुद्ध धर्म नहीं बन सकते हैं, इसलिये यह नहीं मान सकते कि जीव केवलज्ञान स्वरूप है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जीव भिन्न है और उसकी ज्ञानादि पर्यायें भिन्न हैं। अह पुण पुच्चपउत्तो अत्यो एगंतपक्खपडिसेहे। तह वि उयाहरणमिणं ति हेउपडिजोयणं वोच्छं ॥39।। अथ पुनः पूर्वप्रोक्तोऽर्थ एकान्तपक्षप्रतिषेधे। तथाप्युदाहरणमिदमिति हेतुप्रतियोजनं वक्ष्ये ॥39।। शब्दार्थ-अह--और एगंतपक्खपडिसेहे-एकान्त पक्ष (क) प्रतिषेध में; अत्यो-अर्थ (विषय); पुब्बपउत्तो-पहले कहा (जा चुका है); तह वि-तो भी; हेउपडिजोयणं-हेतु (का साध्य के साथ अधिनामाय) सम्बन्ध (बताने वाला); इणं-यह उयाहरण उदाहरण; वोच्छं-कहूँगा। द्रव्य तथा पर्याय में कर्यचित् भेद, कथंचित् अभेद : भावार्थ-जो यह कहते हैं कि गुण तथा गुणी में सर्वथा भेद है, इसका उत्तर हम प्रथम काण्ड की बारहवीं गाथा में दे चुके हैं। फिर भी द्रव्य तथा पर्याय में कचित् भेद है और कोचत अभेद है, यही सिद्ध करना है। अतएव साध्य के साथ हेतु का अविनाभाव सम्बन्ध बताने वाले दृष्टान्त के द्वारा समर्थन करते हैं। वस्तुतः प्रत्येक ट्रव्य नित्यानित्यात्मक है। वस्तु में रहने वाले गुण नित्य है। अतः किसी अपेक्षा सं गुण नित्य हैं और किसी अपेक्षा से गुण अनित्य हैं-ऐसा अनेकान्त नहीं है। किन्तु एक ही वस्तु, द्रव्य, गुण की अपेक्षा नित्य और पर्याय (परिणमनशीलता) की अपेक्षा

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