Book Title: Sammaisuttam
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ सम्मइसुत्तं 107 अनित्य कही जाती है। कथन-व्यवहार ऐसा ही है। जह कोइ' सट्ठिवरिसो तीसइवरिसो णराहिवो जाओ! उभयत्थ जायसद्दो वरिसविभाग' विसेसेइ ॥40॥ यथा कोऽपि षष्टिवर्षः त्रिंशतियवर्षी नराधिपो जातः । उभयत्र जातशब्दो वर्षविभागं विशेषयति ॥40॥ शब्दार्थ-जह-जैसे; कोइ-कोई (पुरुष); सटिवरिसो-साठ वर्ष (का है); तीसइवरिसो-तीसवें वर्ष (में वह); णराहिवो-राजा; जाओ-हआ (था); उपयस्थ-दोनों (में) यहाँ; जायसदो-जात शब्द; परिसविभागं-वर्ष (का) विभाग; विसेसेइ-विशेषतः (प्रकट करता है)। दृष्टांत : भावार्थ-वर्तमान में जो साठ वर्ष का है, वह जब तीस वर्ष की अवस्था में राजा बना था, तो यह कहा गया कि यह राजा बना। जब यह राजा बना, तब मनुष्य था और इसके पहले भी मनुष्य था। तो राजा कौन बना? पर्याय से तो राजा होना उसकी अवस्था है जो उत्पन्न हुई है और उसके पूर्व की नृपहीलता की अवस्था का विनाश हो चुका है। इस प्रकार राजा से रहित अवस्था का पर्याय रूप से विनाश होने पर मनुष्य का भी नाश मान लिया जाता है। उसमें राजा की अवस्था उत्पन्न होने से उस अवस्था से विशिष्ट मनुष्य का उत्पाद भी मान लिया जाता है। यदि ऐसा न हो, तो यह मनुष्य राजा हुआ, यह व्यवहार नहीं बन सकता है। उक्त गाथा "मूलाचार" में "समयसाराधिकार' गा. 87 में निम्नलिखित रूप में उपलब्ध होती है जह कोई सद्विवरिसो तीसदिवरिसे पराहिवो जाओ। उभयत्थ जायसद्दो वासविभागं विसेसेइ ।। उक्त दोनों गाथाएँ समान हैं। एवं जीवद्दच्वं' अणाइणिहणमविसेसियं जम्हा। रायसरिसो उ केवलिपज्जाओ तस्स सविसेसो ॥41॥ 1. स" जाइसिरो। 2. जोउ। 8. बवासविभाग। 4. ब जीवदायों

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131