________________
सम्मइसुत्तं
58
निक्षेप : लोक व्यवहार भावार्थ-जिस से लोक का व्यवहार चलता है, उसे निक्षेप (विषय) कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ का व्यवहार चार प्रकार से होता है। ये चार प्रकार हैं : नाम, स्थापना, द्रव्य
और भाव । इन में से प्रथम तीन-नाम, स्थापना और द्रव्य ये द्रव्यार्थिक नय के निक्षेप हैं, किन्त जो भाव निक्षेप है वह पर्यायार्थिक नय की चर्चा रूप है। यही इनका परमार्थ है अर्थात वास्तविकता है। नाम से नाम वाला, स्थापना तथा स्थापना वाला, द्रव्य एवं द्रव्यवान ये परस्पर भिन्न नहीं हैं। अतः अपेद होने से ये तीनों द्रव्यार्थिक नय के विषय है। किन्तु प्रत्येक समय से भाव में भिन्नता होने से भाव निक्षेप पर्याय रूप है। अतएव भाव निक्षेप पर्यायार्थिक नय का विषय है। उक्त गाथा 'षट्खण्डागम', जीवस्थान 1, 1, 1, गा. 9 तथा 1, 3, 1 में एवं 'जययवला' टीका ग्रन्थ 1, पृ. 260 पर "उत्तं च सिद्धसेणेण" कथन में उद्धृत की गई है।
पज्जवणिस्सामण्णं' वयणं दवट्टियस्स अत्यि ति। अवसेसो' दयणविही पज्जवभयणा सपडिवक्खो' | '71
पर्यवनिस्सामान्यं वचनं द्रव्यार्थिकस्य अस्तीति । अवशेषो यचनविधिः पर्ययभजनात् सप्रतिपक्षः ॥7॥
शब्दार्थ-अस्थि-है (सत); ति-यह (वचन); पज्जवणिस्सामण्णं-पर्याय (से) रहित सामान्य (विशेष से सर्वथा रहित); दबष्ट्रियस्स-द्रव्यार्थिक (नय) का; वयण-वचन (विषय है); पज्जवभयणा-पर्याय (के) विभाग से; अवसेसो-बाकी सब; वयणविही-बचनविधि (कथन-प्रकार); सपडियक्खो-प्रतिपक्षी (सापेक्ष है)।
दोनी नयों का विषय : भावार्थ-अध्यात्मशास्त्र में सात नयों में दो प्रमुख माने गये हैं-द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय। द्रव्यार्थिकनय अभेद रूप तथा सामान्य कथन करता है, किन्तु पर्यायार्थिकनय का विषय भेद रूप पर्याय की विशेषताओं का कथन करना है। अस्तित्वमूलक 'अस्ति' वचन-भेद-पर्याय से रहित होने के कारण द्रव्यार्थिकनय के आश्रित है। परन्तु इसके अतिरिक्त जीव है, अजीब है, मनुष्य है, पशु है, पक्षी है,
I, पज्जवनीसामन्न। 2. स" अवसेसा! . स यचपचिहा।