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सम्म
इत्यादि वचन-भेद किसी स्वतन्त्र नय के अधीन न हो कर द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दोनों नयों के आश्रित हैं। क्योंकि इन वचनों से अवान्तर सामान्य कथन के साथ ही विशेष भेद रूप पर्याय का भी कथन किया जाता है। ये दोनों ही एक-दूसरे की अपेक्षा रखते हैं। परस्पर सापेक्ष होने के कारण ही ये नय हैं।
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पज्जवणयवोक्कतं वत्युं दव्वट्टियस्स वयणिज्जं । जाव दविओवओगो अपच्छिमवियप्पणिव्वयणो ॥8॥
पर्यायनयव्युत्क्रान्तं वस्तु द्रव्यार्थिकस्य वचनीयम् । यावद्द्रव्योपयोगोऽपश्चिमविकल्पनिर्वचनः ॥8॥
शब्दार्थ - जाव - जब तक अपच्छिमवियप्पणिव्वयणो अन्तिम विकल्प (और) वचन- व्यवहार ( रूप ): दविओवओगी - द्रव्योपयोग ( है ) ( ताव - तब तक ) : पज्जवणयवाक्कतं पयथार्थिकनय (से) अतिक्रान्तः वत्युं वस्तु को दव्यद्वियस्सद्रव्यार्थिक (नय) की; वयणिज्जं - वाच्य (जानो) ।
नय एक-दूसरे से अतिक्रान्त
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1.
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भावार्थ - जहाँ तक सामान्य भाव-बोध है, वहाँ तक द्रव्यार्थिक नय का विषय है। सत्ता सामान्य के विषय में जब तक पर्याय सम्बन्धी विकल्प तथा वचन व्यवहार उत्पन्न नहीं होता, तब तक पर्यायार्थिकनय से अतिक्रान्त वस्तु द्रव्यार्थिकनय की वाच्य है। तात्पर्य यह है कि अन्तिम विशेष से सामान्य उपयोग सम्भव नहीं होने से वह द्रव्यार्थिकनय का विषय नहीं है, किन्तु महासत्ता ( सामान्य सत्ता ) द्रव्यार्थिकनय का ही विषय है तथा मध्यवर्ती जितनी अवान्तर सत्ताविशिष्ट पदार्थमाला है, वह द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयों में आश्रित है। द्रव्यार्थिकनय जब सर्वव्यापक सत्ता सामान्य को विषय करता है, तब दृष्टिगत विशेष को उपेक्षित कर देता हैं। इसी प्रकार जब पर्यायार्थिकनय वस्तुगत विशेष को विषय करता है, तब सत्ता सामान्य को गौण कर देता है। अतः अन्तिम विशेष के अतिरिक्त सभी विषय उभयनय सामान्य हैं। इसे यों भी कह सकते हैं कि अपने-अपने विषय की मर्यादा में एक नय का दूसरे नय में प्रवेश होना सम्भव है, किन्तु अन्तिम विशेष में यह सम्भव नहीं है। सामान्यतः एक नय दूसरे नय से अतिक्रान्त होता है। परन्तु कोई भी नय ससा विशेष या सत्ता सामान्य का लोप नहीं करता, बल्कि उसकी उपेक्षा कर देता है।
दव्वट्ठियो त्ति तम्हा णत्थि गयो' नियमसुद्धजाईओ । ण य पज्जवडियो णाम कोइ भयणाय उ विसेसो ॥9॥
अ, ब णओ।
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