________________
सम्मइसुत्तं
60
एगदवियम्मि जे अत्थपज्जया' बयणपज्जया' वा वि। तीयाणागयभूया तावइयं तं हवई दव्वं ॥31॥
एक द्रव्ये येऽर्थपर्याया वचनपर्याया वापि। अतीतानागतभूतास्तावतत्कं तद् भवति द्रव्यम् ॥31॥
शब्दार्थ-एगदवियम्मि-एक द्रव्य में; जे-जो; तीयाणागयभूया-अतीत, भविष्य (और) वर्तमान (में); अत्थपज्जया-अर्थपर्याय; या-भी; क्यणपज्जया-वचन-पर्याय (शब्द या व्यंजनपर्याय) है. : हवंद्रमा नाइर-- उपना; इस होता है :
द्रव्य कितना ? भावार्थ-एक द्रव्य में जितनी अतीत, भविष्यत् और वर्तमान की अर्थपर्यायें तथा व्यंजन (शब्द) पर्यायें हुई हैं, होने वाली हैं और हो रही हैं, वह द्रव्य उतना ही है।
पुरिसम्मि पुरिससद्दो जम्माई मरणकालपज्जंतो। तस्स उ बालाईया पज्जवजोगा' बहुवियप्पा ॥32॥
पुरुषे पुरुषशब्दः जन्मादिमरणकालपर्यन्तः।
तस्य तु बालादिकाः पर्यवयोगा बहुविकल्पाः ॥3211 शब्दार्थ-जम्माई-जन्म से; मरणकालपज्जंतो-मरणकाल तक (अनन्त पर्यायों में); पुरिसम्मि-पुरुष में पुरिससदो-पुरुष शब्द (का व्यवहार होता है); तस्स-उस (पुरुष) के; उ-तो; पज्जवजोगा-पर्याय (के) संयोगों (से); बहुवियप्पा अनेक विकल्प (अंश होते हैं)। व्यंजनपर्याय : सदृशपर्यायप्रवाह : भावार्थ-पुरुष के रूप में जन्म लेकर मरण पर्यन्त यह जीव 'पुरुष' कहा जाता है। यर्तमान, भूत, भविष्यत् तीनों कालों की अनन्त अर्थपर्याय तथा व्यंजनपर्यायात्मक पुरुष रूप पदार्थ में 'पुरुष' शब्द का प्रयोग होता है। जीव का यह पुरुष रूप सदृशपर्यायप्रवाह व्यंजन-पर्याय है। इसमें जो शैशव, यौवन, बुढ़ापा आदि अनेक प्रकार की स्थूल तथा अन्य सूक्ष्म पर्यायें भासित होती हैं, वे सब पुरुष की ही अवान्तर पर्यायें हैं, जिन्हें यहाँ अर्थपर्याच कहा गया है। 1. ब"पज्जता। 2. पश्यया। 5. अ" पज्जवजोय। 4. द बहुयिषप्पा।