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( २८ ) के पत्रांक दिये हैं। अतः वह टीका तो पूरी बनाई ही होगी,पर अभी तक अन्य सर्गों की टीका के पत्र नहीं मिले। जिसकी खोज अत्यावश्यक है। इसी प्रकार मेघदूत वृत्ति की अपूर्ण प्रति ओरियन्टल की लाइब्ररी लाहौर में देखी थी, उसकी भी अन्य प्रति नहीं मिली। अतः पूरी प्रति अन्वेषणीय है।
सं० २००२ में जब कवि के स्वर्गवास को ३०० वर्ष हुये, हमने शार्दूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्ट्रीच्यूट की ओर से समयसुर त्रिशती उत्सव मनाया था और कवि की रचनाओं का प्रदर्शन भी किया गया था, जो विशेष रूप से स्मरणीय है।
कवि को कई रचनाएँ अभी संदिग्धावस्था में है। उनकी अन्य प्रतियों की प्राप्ति होने से ही निर्णय किया जा सकेगा। जिस प्रकार जैन गुर्जर कविओं भाग ३ के पृ०८४४ में स्थूलभद्र रास का विवरण छपा है। इस प्रति को हमने मँगवा कर देखी तो पद्यांक ६५ में समयसुन्दर नाम आता है, अन्यत्र 'कवियण' उपनाम प्रयुक्त है और ग्रन्थ का रचना काल संदिग्ध है
इन्दु रस संख्याइं एह, संवत्सर मान
आदिनाथ थी नेमिजन, तेतमउ वरस प्रधान । इसकी अन्तिम पंक्ति से देसाईजी ने २२ की संख्या ग्रहण की है, पर वह संदिग्ध लगती है। इसी प्रकार झडियालागुरु (पंजाब) की सूची में कवि के रचित शालिभद्र चौपाई और अगडदत्त कथा (सं० १६४३ में रचित पत्र १०) आदि का उल्लेख है। जैसलमेर भण्डार की सूची में पं० लाल चन्द गांधी उल्लिखित कई रचनाएँ हमें अभी तक नहीं मिली। वे वास्तव में कवि की हैं या नहीं, प्रतियां मिलने पर ही निर्णय हो सकेगा।
हमारे संग्रह में एक व्रत प्रहण टिप्पण मिला है । जिससे मालूम होता है कि सं० १६६७ के फाल्गुन शु० ११ गुरुवार को
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