Book Title: Samarpanam
Author(s): Ratnabodhivijay, Sanyambodhivijay
Publisher: Jainam Parivar

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Page 12
________________ ભવોદધિતારક પ.પૂ. ગુરૂદેવશ્રીનો આશિર્વાદ પત્ર नमो नमः श्रीगुरूप्रेमसूरये। सुविशायी गरछना सर्भक स्थ सिद्धांतमहाईघि खायार्य हेव समह यन्य प्रेमसूरी धरल महाराल शून्यमांश लमने विकरार सभी ड्यु संवत वृद्मो पिंडवाडा यानुमासि असँगे रच-गुरु साथै सार हाएगा हता जाने सागस्त्य थवे हयात थघने लगलग टकर लघु मुनिसोनु समाग हो रखनके ज्ञानी, गीतार्थ तपस्वी, प्रम थन बटुलो- संयमीजीको मिशाज समुदाय ना तेजो सभी जन्या. तेजोआना परघर, लवन कर सुध गुरु लगयंतनी धरछाखोली पूर्ति दुखानु अर्थ भी भेमागे यु ले स्वा पूक्यपाह अनुरुप सामायी लगयंत क्रम लक्ष्य महारान बुधवलानु सूर घर श्रेष्ठ संयम् उग्रतप साथै विशिष्ठ पानरोमन विशेषता हुती अनुशासन रखने प्राप्ति के संघनी सेवामा खायु भवन समर्पित ड्यू, अजण पुरु षार्थ ड्यौ, काननी टेली संध्या सुद्ध संप्रमत्र साधना सांधे ते खोने अत्यंत समाधि साथै परलोक भयागयु जुद्ध वरस्पति भेजी हुती, लेख प्रनुशासन खाने संघना जल्युदय मारे खनडे प्रसरण योजनाको तेमना मनमा रमती भी की त्थ अनु शासन याने संघना खल्युध्य माटे संयम, ज्ञानी तपस्वी साधुकोना दान समुहायनुं सर्वान डवु (२) ऋतु शासनना दिशा साहित्यन रक्षाका सूিत्र उन्मार्गको अतिकर प्रभु शासनकी रआ दुरकी (3) साधु साधु की नमी सेयमनु डरले माटे विशार इसका वायनाकी खापफ के set श्रासी का व्रत, पपइयाग बारे घमंत्र हाति शोमी कडेला

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