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के पद पर श्री सहाजानंदघनजी ने आसीन किया था ! इन सभी का कैसा सुभग संयोग !! वह भी श्रीमद्-साधनाधाम ईडर घंटिया पहाड़-स्थित “सिद्धशिला" की छाया में !!!
अतः उपर्युक्त तीन तीन दिव्य मातरूपों का एक साथ दर्शन और इन के बीच शिशु-बालवत् लघुताधारी सहजानंदघनजी का भी दर्शन - यह सारा नज़ारा ही अद्भुत अद्भुत था । हम तो इस दुर्लभ अवसर को पाकर धन्य धन्य और मानों कृतकृत्य बन गए थे । ___ वास्तव में भगवान महावीर और श्रीमद् राजचंद्रजी के ही नारी के दिव्य मातृरुप के उन्नयन के आदर्श को अपनाकर मानों सहजानंदघनजी पदानुसरण कर रहे थे । इन दोनों महत्पुरुषों की मातृभक्ति किसे ज्ञात नहीं है ? सहजानंदघनजी ने भी अपनी इस पूर्वाश्रम की काकी-माँ ( धनदेवीजी) को 'जगत्माता' पदासीन करने से पूर्व ऐसी ही मातृरुपिणी नारीशक्ति कु. सरलाबेन में भी आत्मज्ञान अनुप्राणित कर, उन्हे परमहंस दशा प्राप्त करवाकर, 'आतम भावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान' की आत्मधन सह परमगरु श्रीमद का दिव्य-दर्शन करवाकर, समाधिमरण प्राप्त करवाया था वीरनिर्वाण-भूमि पावापुरी में । इस सरलात्मा 'सरलानंद' सच्चिदानंदकुमार देव एवं जगत्माता धनदेवीजी में ही नहीं, साध्वीजी विचक्षणाश्रीजी, निर्मलाश्रीजी, स्वयं श्रीमद्-पुत्री पू. जवलबा, भाणबाई, मेघबाई, वेलबाई, सती माँ, लक्ष्मीबेन, गुणवंतीबेन, मधुबन, रमाबेन, कस्तुरीबेन, रूपा माँ आदि आदि अनेकानेक "मातेश्वरीओं" में उन्होंने आत्मज्योति जगाई थी - कदाचित् मुनिवर आनंदघन विजय जैसे साधकात्माओं के समान ही । ये मुनिवर आनंदघन विजय और दूसरे समाधिमरण-संप्राप्त बाबा आनंदघन (अमीचंदजी) जैसे पुरुष-भक्तों ने उनसे पाया उससे शायद अधिक मातृरुपी स्त्री भक्तों ने प्राप्त किया । भगवान महावीर की परंपरा भी श्राविकाओं एवं साध्वियों की संख्या अधिक बतलाती है न !
अतः विमलाताई के हमारे विसनगर छात्रा-संस्कार के नारी-उन्नयन शिविर के मानों प्रतिभाव के रूप में ही नारी-ऊद्धारक भगवान महावीर एवं श्रीमद् राजचंद्रजी दोनों के प्रतिनिधिरूप में ही हमें श्रीमद्धाम ईडर पहाड़ पर योगीन्द्र युगप्रधान श्री सहजानंदघनजी का प्रथम दर्शन-मिलन हुआ वह सांकेतिक था।
यह सत्मिलन था तो एक ही दिन का, पर वह हम पर किसी पूर्वसंस्कार-सम्बन्ध-जागरणवत् तब अमिट प्रभाव छोड़ गया।
फिर दो साल के बाद, जब हम विसनगर कोलेज आचार्यपद त्यागकर अहमदाबाद गांधीजी द्वारा संस्थापित गूजरात विद्यापीठ के प्राध्यापक पद पर आकर, अपने दीर्घकालीन परमोपकारक प्रज्ञाचक्षु पंडित श्री सुखलालजी की निश्रामें पुनः पहुँच गए थे, तब आगे अनुसंधान हुआ उपर्युक्त सहजानंदघनजी से सम्बन्ध का । फिर कोई सांकेतिक दिव्य आयोजन न हो वैसे, गुरुदेव सहजानंदघनजी एवं उनके निश्रागत शिष्य हमारे अग्रज श्री चंदुभाई की प्रेरणा से आर्षदृष्टा पंडितश्री सुखलालजी ने ही हमें आदेश दिया - जैन दर्शन विद्यापीठ निर्माणार्थ श्रीमद् राजचंद्र आश्रम हंपी एवं बेंगलोर जाने का : सहजानंदघनजी की निश्रा एवं अग्रज की सेवा में । हंपी के प्रथम दर्शनोपरांत,
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