Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 13
________________ ॥ ॐ ऐं नमः ॥ प्रास्ताविक "प्रत्यक्ष सद्गुरू सम नहीं, परोक्ष जिन उपकार ।" हम सब के परमोपकारक प्रत्यक्ष सद्गुरूदेवों प.पू. परम कृपाळुदेव, प.पू. गुरूदेव, प.पू. माताजी, प.पू. दादाजी एवं पूर्वोपकारक परमपुरुषों एवं अन्य विश्व के प्रेरणात्माओं के परम अनुग्रह से, पूज्य गुरूदेव की यह पावन जीवनकथा पूज्य माँ के चंद बहुमूल्य, दुर्लभ जीवनप्रसंगों सह लिखी जा रही है । इस महा सर्जना में सब कुछ उनका ही कृपाबल है, इस निमित्तमात्र का कुछ भी नहीं । ___ उन सब की, अनेक पूर्व गुरूबंधुओं की, आप सभी की एवं स्व-अंतस् की आशा-आकांक्षाअपेक्षा-प्रेरणाएँ इसे अभूतपूर्व अभिव्यक्ति प्रदान करने जा रहीं हैं। __ अचिंत्य माहात्म्यमय हमारे-आपके-सबके आराध्य एवं उपकारक गुरूदेव की हस्ती ही इस काल में असामान्य है। इसे हमें विश्वव्यापक स्वरूप में प्रस्तुत करना है जो उनकी गरिमा के लिए अपेक्षित है, आवश्यक है, अनुरूप है । इससे ग्रंथ सार्वभौम सर्वयोग्य बनता है - विचारकों-चिंतकों विद्वद्जनों के लिए भी, सर्व सामान्य पाठक के लिए भी । प्रत्येक को इस महाकथा-कृति से कुछ न कुछ तो प्राप्त होना ही है। परम उपकारक परमकृपाळु देव श्रीमद् राजचंद्रजी की क्षेत्र-स्पर्शित पुनित तीर्थभूमि इडर पहाड़ पर हमें प्रथम दर्शन-परिचय हुआ सद्गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी का, श्रीमद् जन्म शताब्दी वर्षान्त 1967 दिसम्बर में । ___ वह एक अप्रत्याशित सांकेतिक संयोग ही था। तब विसनगर महिला कोलेज में यह पंक्ति लेखक आचार्यपद पर था, जहाँ आयोजित छात्रा-संस्कार शिबिर का संचालन विदुषी विद्रोहिनी अध्यात्मयोगिनी एवं श्रीमद्जी-पुरस्कर्ता विमलाताई ठकार द्वारा करवाया गया था । श्रीमद्-भक्ति में खोई हुई ताई ने उक्त शिबिर में छात्राओं को श्रीमद्जी-प्ररुपित स्त्रीशिक्षा का अद्भुत बोध दिया था । उसी भावलोक में रत विमलादीदी ने हमें शिबिरान्त में अचानक कहा, “प्रतापभाई ! आप श्रीमद् की साधनाभूमि इडर पर बहुत बार जाते हैं... आज हमें भी वहाँ ले चलो।" "अवश्य दीदी, तुरंत प्रबंध करता हूँ।" कहकर स्वयं भी आनंदित होकर, एक जीप-गाड़ी मंगवाकर, हम तत्क्षण निकल पड़े। "अपनी सितार भी साथ ले लेना ।" दीदी का दूसरा आदेश हुआ और सितार भी उठा ली। इस आकस्मिक आयोजन के पीछे कोई अगम्य रहस्यमय संकेत ही था जिसके अंतरानंद में डूबते हुए हम उसी रात को ईडर पहाड़ पर पहुँच गए । श्रीमद्जी-प्रबोधित एवं विनोबाजी-प्रचारित जिस विद्रोहिनी प्रेमभक्तिपूर्ण मातृस्वरूप स्त्रीशक्ति-जागरण की, उसके ज्ञान-संवर्धन की और उसके मंगलमय, वात्सल्यमय, प्रेम भक्तिपूर्ण मातृस्वरूप के उत्थान की स्वयं विद्रोहिनी एवं ज्ञान-भक्तिरुपिणी ऐसी विमलाताई विसनगर छात्रा (ix)

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