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४ : पीयूष घट ____ "क्या यह पीने के योग्य है ?" नाक सिकोड़कर तिरस्कार की भाषा में रथनेमि ने राजमती से कहा ! ___"क्यों, क्यों नहीं। जबकि आप, अपने लघ भ्राता नेमिनाथ के द्वारा परित्यक्ता राजकुमारो को परिगृहीता करना चाहते है ! तो यह वान्त पात्र का पदार्थ पान नहीं है ?" __रथनेमि की विचार-धारा बदली, वह आभ्यन्तर निन्द्रा से जागृत हुआ और आत्म-साधक श्रमण बन गया । नेमि के बिना राजुल की दुनिया सुनी थी ! वह भी परिव्राजिका होकर अपने मनोनीति आराध्य के पथ पर चल पड़ी। मन को मोड़ने की देर है, जीवन की दिशा बदलने में फिर विलम्ब ही क्या ? __वर्षा की सुहावनी वेला थो। राजुल, भगवान् नेमिनाथ के दर्शन कर गिरनार से नीचे उतर रही थी। उतरते वर्षा हुई ! वर्षा में भीगे वस्त्रों को सुखाने के लिए उसने एक समीपस्थ गुफा में प्रवेश किया। वस्त्रों को इधर-उधर फैला दिया। निर्जन एकान्त स्थान जानकर, निर्वस्त्रा होकर वह वहाँ बैठ गई।
परन्तु उसी गुफा में श्रमण रथनेमि भी ध्यान मुद्रा में खड़ा था। राजुल को देखकर उसकी प्रसुप्त वासना जागृत हो गई। हृदय मंथन चला, पर मन थक गया था । वह हारा मन शीतल छाया में सुख खोज रहा था। नारी के रूप से योगो का योग हार चुका था। वह राजुल से भोग की भाषा में बोला : ___ "उठो, राजुल ! तुम्हारा यह सौकुमार्य योग के लिए नहीं, भोग के लिए है। आओ चलो, संसार में चलें। संसार कितना मधुर है ? ओफ ....! और यह दम तोड़ देने वाली योग साधना कितनी कठोर है ?"
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