Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 13
________________ पानश्रीचरित साथे अपभ्रंशनो परिचय पण थाय छे ज. परंतु प्राकृत भाषामां, जैन आगम अने अन्य कथा-चरितात्मक पुष्कळ जैन सहित्यनी, तेम ज ब्राह्मण विद्वानोनी कृतिरूपे लेखाता सेतुबन्ध, गोडवहो, लीलावई जेवा उच्चकोटिना प्राकृत काव्यो अने नाटकादिमा प्रयुक्त थएला विविध जातिना संवादरूप प्राकृत गद्य-पद्य साहित्यनी विपुलताना लीघे, विद्वानोनुं जेटलुं लक्ष्य प्राकृत भाषाना अध्ययन-विवेचन तरफ खेंचातुं रडुं छे तेटलु लक्ष्य अपभ्रंश भाषाना साहित्य तरफ नथी खेंचायुं. वळी आपणा देशना जूना अभ्यासियो तो, ए जूनी अपभ्रंश भाषाने पण मागधी, शौरसेनी जेवी ज एक अन्य साधारण प्राकृत भाषा तरीके मानता अने उल्लेखता, तेथी तेमना मने एनी तेवी कशी असाधारण विशिष्टता होती जणाती. वळी आपणा देशमां तो गुजराती, मराठी, हिन्दी, बंगाली, जेवी देशभाषाओने पण, पुराण कवियो अने ग्रन्थकारो, म्होटा भागे प्राकृतना नामे ज संबोधता अने उल्लेखता. जो कोईक तेमा खास भेद पाडता तो 'अवहह' एटले 'अपभ्रष्ट' भाषा तरीके तेनो निर्देश करी देता. एथी वधारे एनी भाषाविषयक विचारणा आपणा देशमां न्होती थती. आपणने आपणी भाषाओनो परिचय बहु सामान्य लागतो अने भाषाविकासक्रममां तेनुं शुं स्थान अने महत्व छे, तेनी विशेष कल्पना होती थती. ५ ज्यारे युरोपना लोको आपणा देशना परिचयमां आव्या त्यारे तेमने आपणी भाषाओ, के जे तेमना माटे सर्वथा अपरिचित अने अश्रुतपूर्व जेवी हती, तेमना विषयनो अभ्यास अने परिचय करवानी अनिवार्य आवश्यकता प्रतीत थई. आथी तेमणे तत्कालीन देशभाषाओनो परिचय मेळववानो प्रयत्न तो आरंभ्यो ज, परंतु ते साथे तेमनी शोधकबुद्धि अने जिज्ञासावृत्तिये, तेमने आपणा देशना प्राचीन साहित्य अने इतिहासनो अभ्यास करवानी प्रवृत्ति तरफ पण सविशेष प्रेरित कर्या. देशभाषाओ साथे तेमणे भारतवर्षतुं प्राचीनतम वाङ्मय, जे संसारनी सर्वश्रेष्ठ अने प्राचीनतम भाषा संस्कृतमा रचाएलुछे, तेनो अभ्यास पण आदर्यो. ए अभ्यासना एक सुसंगठित अने सुव्यवस्थित साधन तेम ज संस्थान तरीके कलकत्तामां सर विलियम जोन्स नामना इंग्रेज विद्वाने सन् १७८४ मां 'एसियाटिक सोसाइटि' नामनी एक संस्था स्थापित करी अने ते द्वारा संस्कृत साहित्यना मूळ ग्रन्थो छपावीने प्रकट करवानो तथा ते ऊपर इंग्रेजीमा अम्वेषणात्मक निबन्धो विगेरे लखीने, युरोपना तेवा शोधक विद्वानोने तेमनो परिचय आपवानो उपक्रम आरंभायो. ते विद्वानोने संस्कृत साहित्यनो परिचय करतां प्राकृत साहित्यनो परिचय पण स्वाभाविक क्रममा जथवा लाग्यो.सर विलियम जोन्से कालिदासना सुप्रसिद्ध शाकुंतल नाटकनुं पहेलु इंग्रेजी भाषान्तर प्रकट कर्यु (सन् १७८९) अने ते भाषान्तर मात्रना वाचनथी ज जर्मनीनो तत्कालीन महान् विचारक, चिन्तक, लेखक, दार्शनिक विद्वान्, महाकवि ग्याँइथे, संस्कृत साहित्यनी ए अनुपम कृति ऊपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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