Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 109
________________ ३४ वयणु मिलाउँ कंति न विभावई "भयवइ साहउँ " तुज्झु समासिं पेम-बंधु सय- सिक्करु तुट्ट परिणिय अन्न का वि सुहि" अच्छइ 'कुल अकलंकु सीलु गुण-निम्मलु चंचल मण-पवंगु थिरु नच्छेई पिय-संभोग - विवज्जिय- दीणइ संपाविय -सह- दोहग्गई ता सँवारविँ" अज्जु अप्पाणउँ " एउ चिंतेंवि जाम्व मरणडिय पउम सिरि चरिउ मुह - कमलु [44] तुद्धुं पेक्खेविणुं गुरु-सोय- समुद्दि-निवुड्डुहि [ पं० ५२-७४ गिलिउ विडप्पिं ससिहरु नावई " ॥ ५२ म विरत्तु कंतु विणुं दोसिं ॥ ५३ मोत्ताहलु जिह भग्गुं न फुट्टउ ॥ ५४ महु सुइ [ 44 वि न वैत्त इ पुच्छइ ॥५५ जोवणुं दुजउ अगंगु महावलु ॥ ५६ विसय- महावणि" भवणहि इच्छइ ॥५७ पय- पूरणई विलास - विहीणई ॥ ५८ महूँ" जीवंतिई काइँ अभग्गंई ॥ ५९ तायह लंछणु अवस न आणॐ ॥ ६० भयवइ झत्ति ताम्ब तुहुँ दिट्ठिय ॥ ६१ 18 ॥ घत्ता ॥ Jain Education International " तो गणणि पजंपइ महुर-वाय जिउ एउ अणां निवद्ध-कम्मु नारय- तिरिएस अनंत-कालु तइँ आसि भवंतरि कि [य]उँ धम्मं जावजिउ सुहलक्खण- सरीरु 20 संपाविउँ जोवणुं विगय-सोगु किउ आसि किं-पि भोगंतराज निद्दोसहि जं जि विरत्तु कंतु [45] चिरु कालु भोग सुर- माणुसेसु मुह - रसिय विसय विरसाऽवसाणि 25 किं कह वि नैं साविऍ सुयउ एउ मणु (नि) हि विसऍहि संचरंतु भयवइ उज्झिर मई मरणं । मज्झु अणाहहि तुहुँ" सर” ॥ ६२ 26 [६] "सुणि सुंदरि अवहिय मज्झु वाय ॥ ६३ अलहंतु जिनिंदह तणउँ धम्मु ॥ ६४ अणुहवइ अणोवमु दुक्ख - जालु ॥ ६५ तिं पाविउ सुंदरि मणुय- जम्मु ॥ ६६ जिणवयण - कुसुमवण- सत्थ-सूरुं (१) ॥ ६७ उवणमिय-मणोहर- कामभोगु ॥ ६८ तिं एहु अयंडे" हुउ विवाउ ॥ ६९ तुहु धम्मसील निरु नेहवंतु ॥ ७० उवभुत्त न जीवह तह वि तोसु ॥ ७१ किंपाग - फलोवम मुद्धि जाणि ॥ ७२ अप्प - वहु होइ वहु- पाव - भेउ ॥ ७३ जिण धम्महु उपरि देहि चित्तु ॥ ७४ 1 वयणुं. 2 One mora too many. 3 विधिं . 4 गावइ 5 साहडं. 6 यमासिं. 7 विण. 8 लग्गु. 9 परिणय 10 सतीं 11 वित्तइ 12 जोवणुं. 13 नेच्छइ. 14 'वर्णि 15 पइपुरणई. 16 विहीणई. 17 दोहग्गई. 18 मइ. 19 जीवंतिय. 20 अभग्गई. 21 संवारवि. 22 साउं. 23 मुहु कमलु तुधु. 24 पेक्खे विणुं 27 सरणं. 28 अणाहिइ. 29 मणंत. 30 किउं. 31 घणुं 34 जोयणु. 35 ° सोहु. 36 भोग. 37 अयंरे. 38 नि. to be superfluous. 41 उवरि. 25 मरणं. 26 तुहुं. 32 सय. 33 संपाविय. 39 यदु. 40 नि appears For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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