Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 113
________________ 10 तव-संजम - करण-समुज्जयाहँ सो आउ निबंधइ नरइ घोरि पेक्खंतह लोयहँ अज्जु तारु पउमसिरिहि जिं उत्तरिउ (?) आलु" ' चित्तमय- सिहंडी' महु मणोज्जु कंतिमई - परियणु सुड्डु रम्मु ता झत्ति समुड्डि चित्त-मोरु har - र मेलइ कल-निनाउ तस्स वि उन्नउँ (?) कलावभारु उडेवि झत्ति भित्तिहिँ" विलग्गु ३८ 15 23 " निम्मल-चारित्त - गुणड्डूहि अमुणिय- परमत्येंहि अम्हेंहिं पउमसिरि चरिउ परमसिरिहि केवल-महिम देव अवणिय - त[50%] णयंकुर तक्खणेण मेलहि गंधुकडे- कुसुम - वुट्ठि वित्थिन्न-पत्त- पब्भार-फार पउमसिरि तेत्थु भयवई निसन्न पक्खुहिय-महो वहि-गरुय नाउँ वायंति वीण विज्जाहरी मणहरु नच्चंति सुरंगणार विज्जाहरे सुर गंधव जक्ख अज्जियहि दिट्टु उप्पन्नु नाणु 25 किय महिम सुरेहि उच्छलिय वत [14] पुर-ज अंतेउरु विजउ राउ [ पं० १३८ - १६० मय- मोह - विहूणहँ संजयाहँ ॥ १३८ निच्चंधयारि वीभच्छ-रोरि ॥ ३९ तेण वि कमेण निग्गलिउ हारु [501] १४० चिंतई मणेण सो खेत्तवालु ॥ ४१ कह गिलिउ हारु अवणेइ चोजु (१) ॥४२ अच्छइ नियंतं जा चित्तयम्मु ॥ ४३ भवणंगणि नच्चइ हियय-चोरु ॥ ४४ कोडे लोउ देक्खणह आउ ॥ ४५ निग्गलिड असेसु इ तेण हारु ॥ ४६ विम्हइउ लोउ बोलणह लग्गु ॥ ४७ ॥ घत्ता ॥ Jain Education International लोह-मोह-मय- वज्जियहि । आलु दिनु तहि अज्जियहि" ॥ ४८ [१३] भत्तीऍ करंति हि (?) आय केम्व ॥ ४९ सिंचंति भूमि चंदणरसेण ॥ १५० इंदियवर - कुल-संजणिय तुट्टि" ।। ५१ dear चंदण मलय- सार ॥ ५२ चउगइ-संसार-समुद्द-तिन्न ॥ ५३ वाति (वि) थिरु किउ सीहनाउ ॥ ५४ गायंति सुहावउँ किन्नरीउ ॥ ५५ रस- हाव-भाव - रंजिय-मणाउ ॥ ५६ "जय जय" थुणंति भयवई असंख ॥ ५७ निस्सेस-वत्थु - वित्थार - जाणुं ॥ ५८ कंतिमइ कित्तिमइ ताहि कंत ॥ ५९ वंदह आउ निग्गय-पयाउ ॥ १६० 1 बिभच्छरु. 2 It should be तेणवि कमेण निग्गलउ. In the next line also उत्तरिउ should be उत्तरइ 3 चिंतई. 4 चिंतइमसिहिंडि. 5 मिलिउ 6 कंतिमई. 7 परियणं 8 नियंतु. 9 For उद्दंड or उत्तुंग ? 10 भित्तिहिं. 11 पलु. 12 अज्जियहिं 13 °तयं कुरु. 14 गंधुक्कडु. 15 ° संजमिय. 16 तुट्ट. 17 भयवई. 18 13. 19 Defective. 20 विज्झाहरीउ. 21 विजहर 22 भयवई. 23 वस्थ. 24 जाणु. 25 कंति. 26 पुरुजणु. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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