Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 112
________________ पं० ११६ - १३७ ] C " जइ विसयहँ तु नियत्तु चित्तु "भयवइ मइँ जणुं जणु भणइ चोरि तइँ कह वि भवंतरि [48] ] आलु दिन्नु मं कास वि उप्पर' वहहि रोसु सवि संजमि निञ्चलु करहि भाउ लहु अय-पंकु पक्खालहि जं दिन्नु तुज्झु सइ हथि छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसाइँ आयंबिल - निविय - एगदंति चंदाय रयणावलि -विहाणु इयमाइ चरंतिहि तव - विसेसु झायंती" निच्च सुक्क - झाणुं जाणिज्जहिं" तिन्नि वि जेण काल जाणिज्जहिँ जेण असेस दिव जाणिज्जहिँ कुल-पय-नई जाणिज्जहि जेण विचित्त कम्म जाणिज्जहि जेण अइंदियत्थ जाणिज्जहि वायर - सुहुम- भाव जाणिज्जइ" जिं पायालु सग्गु 23 संपुन अणंतु [49B] अणोवमु उप्पन्न नाणुं वर- केवलु उत्थ संधि ३७ अवहरिउ हारु तइँ कहु निमित्त " ॥ ११६ तो जामि कहिँ वि अन्नेत्त दूरि” ॥ १७ तं असुर्ह कम्मु एवहि उइन्नुं ॥ १८ किय-कम्मह कह वि न होइ नासु ॥ १९ अणुदिणुं मणि सुमरहि वीयराउ ॥ १२० ॥ घत्ता ॥ वि संजमि निञ्चल-मणहि । अमुणिय- परमत्येंहि खलेंहि ॥ २१ [११] मासद्ध-मास- दोमासियाइँ ॥ २२ केस [र] - विक्कीडिउ हारपंति ॥ २३ जव वज्ज- मज्झैं लेई वडुमाएँ” ॥ २४ घण घोई कम्मु विहडिउ असेसुं ॥ २५ उप्प [49] ज्जइ केवल दिव-नाणु ॥ २६ जाहि सायर जे विसाल ॥ २७ जाणिज्जहि छबिह जेण जीव ॥ २८ सुर-मण्य - तिरिय - नारय-गईउ ॥ २९ मंदर - गिरि-उववण परम रम्म ॥ १३० धमाधम्माइये वहु पयत्थ ॥ ३१ वंधासव-संवर- पुन्न-पाव ॥ ३२ जाणिज्जई जिं फुडु मोक्ख-मग्गु ॥ ३३ ॥ घत्ता ॥ उत्तमु सासउ सिउ अचलु । नजर तिहुय जिं सयलु ॥ ३४ [१२] निद्दड्ड-कम्म झाणाणलेणं खेत्ताहि चिंतइ निय-मणेण ॥ ३५ "मइँ अलिउ आलु अज्जियहि देवि अप्पाणउँ घल्लिउ नरइ नेवि ॥ ३६ उवसग्गु करइ जो मुणिवराहँ सम्मत्त-नाण- दंसण-धराहं ॥ १३७ Jain Education International 1 तुधु. 2 जणुं 3 भमंतरि. 4 अयुह. 5 उरंतु. 6 उपरि 7 अणुदिणुं 8 अयसु. 9 हस्थी 10 माम. 11 चंदायणं. 12 वजमझु 13 लय. 14 वडमाणुं 15 वेसेसु. 16 घाय. 17 अससेसु. 18 झायंति. 19 झाणुं. 20 जाणिजहिं. 21 °नइउ. 22 धम्माईय. 23 जाणिज्जहूं. 24 संपुंन्न. 25 नाणुं. 26 तिहुयणुं. 27 °णानलेण. 28 आपणउं. For Private & Personal Use Only 10 15 28 25 www.jainelibrary.org

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