Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 107
________________ पउमसिरि चरिउ [पं०८-२० कंतिमइ-कित्तिमइ-नामियाउ कणय-च्छइ गयवर-गामियाउ(१) ॥ ८ विन्नि वि कुरंग-पिहु-णयणयाउ विन्नि वि मियंक-ससि(१)वयणियाउ ॥९ विन्नि वि उत्तुंग-पओहराउ विन्नि वि नव-जोवण-मणहराउ ॥ १० परिणइ कंतिमई समुददत्तु कित्तिमई भाई तहुँ उयहिदत्तुं ॥ ११ 5 ते ताहि सहिउ वर-दारियाहिं किडेति पुर्व-भव-भारियाहिँ ॥ १२ ॥ घत्ता ॥ अवरोप्पर गरुय-सणेहहँ सकलत्ताह पमोय-[प]रहँ(2)" । भुजंतह भोग मणोहर जाइ कालु जिम्ब सुरवरहँ॥ १३ [२] "जिह नंद-धूय कंतिमइ तेण परिणिय असोगदत्तह सुएण ॥ १४ संखेण मुणिउँ संबंधु एहु अवरोप्पर विहडिउ ताहँ नेहु[42A]॥१५ आगमणु गमणु ववहारु छिन्नु चिंतवइ संखु चित्तिं विसन्नु ॥ १६ "सीलवइ विणीय गुणाणुरत्त मह धीय तह वि दइएण चत्त ॥ १७ जसु धीय नत्थि सो वरु कयत्थु "[xxxxxxxxxxxxx-]॥१८ 15 जसु धीय नत्थि कुलु विमलु तासु जसु धीय नत्थि सो सुह-निवासु ॥ १९ जसु धीय नस्थि दुन्नय-निहाणु को खंडिवि सक्का तासु माणु ॥ २० जसु धीय नत्थि सो नरु कुलीणु न कयाइ वि जंपइ कह वि दीणु ॥२१ जसु धीय नत्थि दुस्सील-वित्ति अकलंक तासु जगि भमइ कित्ति ॥ २२ जसु धीय नत्थि सो गुरु[उ होइ घरि वाहिरि परियणि सयणि लोइ॥२३ ॥घत्ता ॥ निहोस वि दइय-विवजिय सोयाउ[र जोबणहँ भरि । दालिद्द जेम्व मणु तावई जणयह धीय वसंत घरि""[425]॥२४ [३] पउमसिरि नियय-विन्नाणु नाणु चिन्तवइ रत्ति-दिउ मूढ-झाणु ॥ २५ 18 "निद्दोस वि हउँ कंतेण मुक्क दुस्सील जेम्व पेसणह चुक्क ॥२६ किं कासु वि मइँ घरवासु भग्गु वउ लेवि न पालिउ किं समग्गु ॥ २७ किं हंस-जुयलु सरवरि भमंतु विच्छोहिउँ मइँ पार्वई रमंतु ॥ २८ । 1 कणगच्छमयसयररायसामियाउ. 2 °पओयराउ. 3 कंतिमई. 4 कित्तिमइं. 5 भाय. 6 तहि. 7 डयहिदउ. 8 किणंति. 9 पूव्व. 10 भण. 11 सकलताह. 12 एम्मोयरहं. 13 मुणीउं. 14 चित्ती. 15 मह. 16 धिय. 17 This pada is missing. 18 नदोम. 19 जोयणह. 20 ताबई. 21 घरे. 22 नाणु. 23 झाj. 24 हडं. 25 रमंतु. 26 विछोहिइ. 27 पावई. 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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