Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 105
________________ पउमसिरि चरित [पं० १०५-१२५ संकिय गरुडह जेम्व भुयंगी । संकि य वग्घह जेम्व कुरंगी ॥ १०५ संकिय सेल-मुत्ति जह वजह संकिय मुणिवइ जेम्व अकज्जह ॥ ६ संकिय जिह सइ असइ-प[39]संगह संकिय जिह सालूरि भुयंगह ॥७ संकिय जिह चक्काइ वियालह संकिय बरहिणि' जेम्व विडालह ॥ ८ 5 संकिय रायहंसि जिह जलय[ह] संकिय जेम्व वसुंधरि पलयह ॥९ ॥ घत्ता ॥ जिस्व करिणि विझि आसंकिय खर-णहरह पंचाणणहु । तह भीसणु रूउँ निएविणु वाल चमक्कियं-चित्त तहु ॥ ११० [९] 10 वोल्लाविउ कंतु न देइ वाय कर मरलि करेविणु भणई जाय ॥ ११ "को अविणउ मइँ किउ सामिसाल" पडिभणइ सो वि आरुढ वाल ॥ १२ "दुस्सीले दिट्टि महु परिहरेहि अह कालि अपूरइ तुहु मरेहि ॥ १३ तं असुय-पुबु निसुणेवि कंत [39] अइगरुय-तास-कंपंत-गत ॥१४ वजाहय जिह कुल-सेल-मुत्ति मुच्छिय धरणीयलि पडिय झत्ति॥१५ 15 चिर-वेलई उद्विय लद्ध-सन्न मुह-कमलु करिवि करयलि परुन्न ॥ १६ अच्छेइ वाल जिह वुन्न हरिणि नइ कलुणइं(?) झत्ति विहाइ रयणि ।। १७ पउमसिरि-सरीरह जेम्व कंति नक्खत्त-निवह नहयलि गलंति ॥ १८ इंदिय-सुहं व नासइ तमोहु कुक्कुड-रउ पसरइ नाइ मोहुँ ॥ १९ गयणे वि चंदु विच्छाउ जाउ सोयं व वियंभई चक्कवाउ ॥ १२० 20 नयाँ[इव कुमुय संकुयंति आसा इव दीहउ दिसउ होति ॥ २१ उग्गमई अरुणु संताउ नाइ रविवुद्धि(?)जेम्ब निसि खयहु जाइ॥ २२ ॥ घत्ता ।। हरिसो इव[404] निग्गउँ कुमरु सदेसह पट्टियउ । दोहग्गु जेम्र्वं वर-वालहि उयलि (१) महीयलि संठियउ ॥ २३ [१०] "दुबयण-सल्लु मणि पक्खिवेवि कलुणं रुयंति मइँ परिहरेवि ॥ २४ पिउ गेहि गयउ गलियाणराउ म काइँ हयासंई कियउ पाउ ॥ १२५ 1 पयवहिणि. 2 विरालह. 3 °डहरह पंचाणणह. 4 रुड. 5 निएविj. 6 चमंकिय. 7 भमइ. 8 मइ. 3 परिहरेहिं. 10 मरेहिं. 11 कत्त. 12 धरणीअलि. 13 विरवलई. 14 उहिय. 15 याल. 16 पुंन. 17 नहियलि. 18 मेहु. 19 चवियंभइ. 20 नयणां. 21 सुमुयई. 22 उग्गमई. 23 अरुणु. 24 Defective. 25 पहियउ. 26 जेव. 27 हुवयण. 28 हयासइं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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