Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 104
________________ पं० ८५ - १०५] तईय संधि ॥ घत्ता ॥ मायाविउ दुट्ट पिसाउ सुट्ट कुमरि अवलोइयउ । पवणाहउ जेम्व पईवउ झत्ति न नजइ कहि ठियउ ॥ ८५॥ [७] चिंतइ कुमारु "दुस्सील एह[37B] ... कलत्तु महु भिन्न-नेह ॥ ८६ । अइविम्हउँ निम्मल-कुल-पसूय दुच्चारिणि कह हुय] सं[ख]-धूय॥८७ उम्मग्ग-लग्ग हुय(?)दुट्ठ-सील उद्दाम-वियम्भिय-कामलील ॥ ८८ सच्छंद अणज्ज निराणुकंप(१) अन्नाणिय मोहिय विगय-संक ॥ ८९ न गणइ निय-कुलु मइलिज्जंतं न गणइ सील-रयणु भंजंतं ॥ ९० न गणइ माइ वप्पु स-सहोयरु न गणइ सासुय ससुरउ देयरु[388] ॥९१॥ न गणइ सयण-वग्गु सुहि परियणु न गणइ इह-परलोय-भयाव] ॥ ९२ न गणइ मरणु लज्ज भउ मेल्लइ करइ अकज्जइँ ढङ्कसु खेल्लइ ॥ ९३ कवडु करेवि कंतु मारावइ रवइ अन्नु पुणु सो जि ण भावइ ॥ ९४ पलक्किय ऍह नारि वहु-भंगेहिँ चंदण-लय जिह भुत्त भुयंगेंहि ॥ ९५ छिन्निवि नक्कु कन्न-सहुँ वालहि दंसमि अज्जु कयंतु दुसीलहि ॥ ९६ । तोडमि" कमलु जेम्व सिरु दुट्ठहि फलउ अणंग-संगु पाविट्ठहि" ॥ ९७ ॥ घत्ता ॥ चिंतइ एउ कुमार कोवाणल-जालिय-मणउ । “परिहारु डंडु खल-नारिहि" सुमरिय नीई वियक्खणहु ॥ ९८॥ [८] आइय पउमसिरि अलंकरेवि करि का38B]मलु पउरु तंवोलु लेवि ॥९९ पसरंत-वहल-मुहवास-गंध उभिन्न-निविड-रोमंच-वंशध ॥१०० उन्भड-भिडि-भंग-भीसावणु कुविउ कयंतु नाइ दुईसणु ॥ १ कोय-फुरत-नासु डसियाहरु कुरुल-दिट्ठि नं पयडु सणिच्छरु ॥२ संकिय वण-लय जिह करि-राय? संकिय मंजरि जेम्ब दुवा यह ॥ ३ 25 संकिय कमलिणि जेम्व मियंकहु संकिय कुलवहु जेम्व कलंकहु ॥ १०४ 1 अवलोयइउपउ The first pāda is metrically defective. 2 कुमरु. 3 एहिं. 4 संतए (?) Not properly legible. 5 °विझुउ. 6 कठ. 7 स. 8 अणजो नराइकंप. 9 मइलीजंतं. 10 भजंतं. 11 परियj. 12 भयावj. 13 जकजई 14 यलिकिह. 15 छिनिवि. 16 वालेहि. 17 तोडे मि. 18 अणंगु संगु पाविटिहि. 19 Defective. 20 निई. 21 तम्बोलु. 22 निवड. 23 रोमंचयव. 24 भउडिभंगभीयावर्गु. 25 दईस. 26 °फुरंतु. 27 लइ. 28 करिरायह. 29 जेंव. 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124