Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 102
________________ पं० ४१-६० ] "लहु एहि कुमार समुद्ददत्तं गुरु-सोय-सेल्ल - निब्भिजमाण रच्छामुहि गेहि घरंगणि ' सरि लिणि जेम जल- वज्जिय तईय संधि २७ तु विरहि विसंठुल जणणि पुत्त ॥ ४१ कंठ-ट्ठिय दुक्ख धरइ पाण ॥ ४२ उमसिरि[हि] साहिय लेह-वत्त ता जामि कंतें पेक्खेमि ताउ सा पण अंसु-जलोल-नेत्त "लग्गंति दियह प्रिय दुग्गु देस गउ दिट्ठ जणणि पणमिउ असोउ आनंदिय बंधव सयर्ण-मित्र पउमसिरि विरह - सिहि सोसियंगि नेमित्तिय पुच्छइ भणइ साहु वैलि-मह-भक्खर्ण महुर वाय आवेइ कंतु जइ मज्झु अज्जु आवे कंतु लोयण - सलूणु आवे तुरि महु जीविएसु अह एक्कहिँ दियहि समुद्ददत्त पिय- रहिय दितिं चक्कवाई उन्ने झंप जल-मज्झि देवि पंकय-वर्णु लोलइ गयणि ठाइ ॥ घत्ता ॥ 21 नयणंसु-सलिल(?)गंडयल -थलै (?) लावन्न - कंति-परिवज्जिय 31 लज्जइ. Jain Education International खणि रुयंति न वि थक्कई । रत्ति - दियहु परिसुक्कइ " ॥ ४३ ॥ घत्ता ॥ [ ४ ] "महु दुखि अच्छइ जणणि तत्त ॥ ४४ अवणेमि जBA]णेरिहि हियय - सोउ "४५ "हाँ जामि तई सहुँ अज्जउत्त” ॥ ४६ पिउ-मंदिर अच्छहि तुरियउ एसु ॥ ४७ ॥ ऑलिंगिण विहिं तिं (?) पण सोउ ॥ ४८ अच्छइ कुमारु कु इ कालु तेत्थु ॥ ४९ निरु झूरई रयणिहि जिह रहंगि ॥ ५० "कइयहुँ आवेई मज्झु नाहु ॥ ५१ लहु ( xxxx) उरिउरेहि (?) काय ॥ ५२ दहि- सालि भत्तु तो देमि तुझें ॥ ५३ तुहु देमि जक्ख [35] लैड्डयाँ हृणु (१) ॥५४ ओयाइ तुम्हह वि (?) देसु ॥ ५५ 20 दिणि दिणि झिज्झइ वाल किह । किन्ह - पक्खि ससिरेह जिह ॥ ५६ 1 समुद्ददत्तु. 2 तुहुं. 3 जणणिं. 4 प्परंगणि 5 वक्खइ. 6 दुक्खी 7 Metre requires तुरिउ. 8 आणिलिंग पिहिंति 9 पणहु. 10 सणयण. 11 मित्त. 12 सुरइ. 13 आवेसि. 14 Two moras too few. 15 दुक्खण. 16 तुधु. 17 सलुणु. 18 लड्यहं . हुं. 19 ओआइउ. 20 अंपेदिसु. 21 Should it be सित्त- नयगंसु - गंडस्थल ? 23 चक्कवाइं. 25 झल. 26 पंखहु. 27 पुणुं. 28 धुणेइ. 30 af. 22 दियहिं. 29 °वणुं. 24 कंदंतु. 5 For Private & Personal Use Only 15 [५] निसि - समइ सरोवरु नेण (?) पत्तु ॥ ५७ कंद कलणु दुक्खिय वराइ ॥ ५८ तीरहिँ ठय पंख पुर्ण धुणेवि ॥ ५९ 25 तर्डे-तरुयरि लग्गई दिसिहिँ धाइ ॥ ६० 20 www.jainelibrary.org

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