Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 100
________________ पं० १-१७] तईय संधि [तईय संधि] पणमामि मोह-तम-निवह-नासयं भविय-पंकयाणंदं । विप्फुरिय-गुण-करोहं उसभजिणं तियस-महियं च ॥१ निद्दलि[32]य-तिमिर-नियरा बुह-महिया कमल-संगया जयउ । निम्मल-कलाभिरामा सुयदेवय(?) चंद-मुत्ति व(2) ॥२ उविय-तवणिज-वन्ना सुय-सहिया धवल-सीहमारूढा । अंबय-लुंबि[य] -हत्था अम्बादेवी' सिवं दिसउ ॥ ३ ॥ घत्ता ॥ उज्जोइउ भुयणु असेसु इ गरुय-राय-रंजिय-हियउ । अथवण-सिहरि रवि संठियां संझा-बहु-उकंठियउ ॥४ [१] अत्थमिउ दिवायरु संझ जाय थिय कणय-घडियनं भुयण-भाय ॥ ५ कमलिणि कमलुन्निय(?)-महुयरेहि अंसुऍहि रुएइ सकजलेहिँ ॥ ६ [32]सोआउरु मणि चक्काउ होइ कउ मित्त-विओउ न दुक्खु देइ ॥७ अंधारिय सयल-वि दिसि विहाइ किलिकिलिय-भूय-रक्खस-पिसाय ॥८ 15 तमु पसरिउ किंपि न जणु विहाइ जगु गब्भ-वासि निक्खित्तु नाइ ॥ ९ वोहंत कुमुय-वर्ण उइउ चंदु कंदप्प-महोसहि"-रुंद-कंदु ॥ १० वणि जेम मइंदहु हत्थि-जूह नासेइ मियंकह तिम्व तमोह ॥ ११ हरिणक-किरण-विप्फुरिउ भाई गयणंगण धवलिउ नं छहाइ ॥ १२ निसि-पढम-पहरि उद्दाम-कामि वासहरि कुमार मणाभिरामि ॥ १३ ॥ महमहिय-वहल-वर-धूय-गंधि पंचन्न-कुसुममाला-सुगंधि ॥ १४ रुणुरुणिय महुर-रवि भमर-लीवि पन्जालिय-मणि-मं[33A]गल-पईवि ॥१५ पउमसिरि सहिउ पल्लं[कि] ठाइ सहियणु आणंदिउ घरहु जाइ ॥ १६ ॥ घत्ता ॥ नाणाविह-करण-विसेसेहि सुर-सोक्खइँ माणेउँ कुमरु । आलिंगिउ कंत पसुत्तउ नाई स-विग्गहु पंचसरु ॥ १७ ____1 व्व. सुयदेविई. 3 °मुत्तीय. 4 उवीय. 5 अंयं. 6 लुपि. 7 अम्बादेवि. 8 भुयj. 9 Metre requires संठिउ. 10 कमलुंनिय. 11 अंवारिय 12 सयसयल. 13 विहाई. 14 किलिकीलिय. 15 सिसाय. [6 °वणु. 17 होसदि. 18 हत्थीजूउ. 19 मिहंयंकह. 20 भाई..। गयणुंगj. 22 धवलीउ. 23 रुणुंरुणिय. 24 °लीव. 25 पइव. 26 For माणिउ ? 27 नाविह. पउम०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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