Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 99
________________ पिं.२४०-२६१ पउमसिरि चरिउ आयार करेविणु हिट्ठ तुट्ट वर-सहिय माइ-मंदिरि पइट्ठ ॥ २४० परिहासु करेविणु सहि वसंत पाढेइ कुमार सि लोय-सत्त ॥ ४१ अवणिउ रत्तंवरु करहि लेवि पउमसिरि दिट्ठ नं पयड देवि ॥ ४२ , सहरिसु लच्छी व जणद्दणेण कोमल-कर-पल्लवि लइय तेण ॥ ४३ 5 फंसेण विहि' म्बि वड्डिउ अणंगु नं पउम-नालु कंटइउँ अंगु ॥ ४४ पउमसिरि-सहिउ विहिहिं कुमारु । आरूटु हियइ घोलंत-हारु ॥ ४५ जालेवि जलणु समिहिंधणे] लायंजलि' घित्तिय" दियवरेण ॥ ४६ गंभीर-तूर वाइय [अ]संख आऊरि[31]य काहल जमल-संख ॥ ४७ रवैणिहिँ उग्गाइय मंगलाइँ भमियाइँ चियारि उ मंडलाइँ॥ ४८ 10 गुरु वंदिवि लद्धासीसयाइँ पवरासणि दोवि वइट्टयाइँ ॥ ४९ ॥ घत्ता ॥ एक्कासणि संठिय वाल कुमारहुँ सहइ सहुं(?) । धवलच्छि सुवच्छह नावइ गरि तिलोयणहु ॥ २५० [२२] is आणंदिउ गुरुयणु वप्पं-माय भत्तार-सहिय वज्जिय सुताय(१)॥ ५१ रोमंच-कंचुइज्जत-देह नच्चइ सीलवइ स-चंदलेह ॥ ५२ अइमंथरु पयडिय-हाव-भाव वित्थरिय-महुर-मंजीर-राव ॥ ५३ एत्थंतरि संखु ससत्थवाहु उठवूढ(?)-गरुय-रोमंच-वाहु ॥ ५४ आहरणेहि वत्थेहि उजलेहि तंवोलेहि कुसुम-विलेवणेहि ॥ ५५ 10 माणिक्केहि[81B [xx]ऍहि मोत्तिएहि वहु-खजेहि पेजेंहि भोयणेहि ॥५६ वेवाहिय-वंधव-सयण-मित्त गुरु परियणं सोयासिणि कलत्त ॥ ५७ कइवर नड चेडय भंड भट्ट गंठविय(?) पाडल मल्ल चट्ट ॥ ५८ आरुहिय जाइ सवंग-तोसु सम्माणइ सो पुर-जणु असेसु ॥ ५९ निग्गय संमाणिय जन्नजत अन्नोन्न हसंति कहंति वत्त ॥२६० ॥ घत्ता ॥ जिणु दिव दि हि पणमेविणु भुयण नाहु तियसिंद-नउँ । पउमसिरि लेवि कर-पल्लवि कुमरु सवंधवु घरहु गउ ॥ २६१ ॥विईय संधि ॥ ___ 1 आयारू. 2 तुतुट्ठ. 3 वरिं सहिय. 4 सहरसु. 5 पि. 6 जणंदणेण. 7 घिहिम्वि. 8 कंदूइउ. 9 लोयंजली. 10 समहिं. 11 पितिय. 12 रवणिंहिं. 13 कुमारदु. 14 सुंहिं वसई. 15 विष. 16 कंचइजत. 17 उवढ. 18 तंबोलेहि. 19 परियणि. 20 पुरु. 21 अणेसु. 22 सम्माणिंय. 23 जंतयत. तहसिंदनउ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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