Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 101
________________ 15 पउमसिरि चरिउ [पं० १८-४० [२] परिगलिय रयणि उग्गमिउ भाणु उज्जोइउ मज्झिम-भुयण-भाणु ॥ १८ विच्छाय-कंति ससि अत्थमेई सकलंकह किं थिरु उदउ होइ ॥ १९ सूरह भएण नासेवि निहीणु गिरि-कंदरि विवरि तमोहु लीj ॥२० । रेहहिँ कमलायर पयड-कोस विलसंति मित्त किर विगय-दोस ॥ २१ मउलंति कुमुर्यं महुयर मुयंति थिर( 33B] नेह मलिणं किं कह वि हुंति ॥२२ मुणिवर करंति सज्झाउ झाणु कुरलंति हंस निम्मलु विहाणु ॥ २३ नवकारु पढंति थुणंति सिद्ध पउमसिरि कुमारि सहुँ विउद्ध ॥ २४ गोसग्ग-कजु सयल इ करेवि गुरु-चलण-कमलु पणमंति वे वि ॥ २५ 10 गउ सत्थवाहु निय-पुरि स-वंधु ठिउ कुमरु तहि वरवसुहगंधु (?) ॥ २६ गाढाणुराय पउमसिरि तासु छाया न मेल्लइ खणु वि पासु ॥ २७ हरि-हियइ जेम्व निवसेइ लच्छि तिह सा वि कुमारह दीहरछि ॥ २८ पुबज्जिय जण-मण-हरण-दक्खु माणंति जहिच्छई विसय-सोक्खु ॥ २९ ॥घत्ता । [34A] सोहग्गउँ लावन्नउँ तं पेक्खेवि[णु] विम्हिय-मणेहि । सलहिजइ अणुदिणु लोएहि हरिसुप्फुल्लिय-लोयणेहि ॥ ३० [३] गुरु-विविह-विणोइं दियह जंति अवरोप्परु राउसवइँ(?) करंति ।। ३१ कइय वि निय-अंग-पसाहणेण कइय वि गुरु-चलणाराहणेण ॥ ३२ 20 कइय वि जिणिंद-गुण-कित्तणेण कइय वि साहूण नमसणेण ॥ ३३ कइय वि जिण-धम्म-कहाणएहि कइय वि रमंति उज्जाणएहि ॥ ३४ कइय वि करंति जल-केलि रम्मु कइय वि लिहंति वर-चित्त-कम्मु ॥ ३५ कइय वि पेच्छणय-पलोयणेण कइय वि साहम्मिय-भोयणेण ॥ ३६ कइय वि पढन्ति पन्होत्तराइँ[34B] वहु-भेयइँ गूढ-घणक्खराइँ ॥ ३७ 25 भुंजंतह मणहर विसय लट्ठ संवच्छर वोलिय ताम अट्ठ ॥ ३८ अह अन्न-दियहि नामि वराहु साएयहि आविउ लेहवाहु ॥ ३९ तिं चित्तु लेहु वायइ कुमारु तहिँ लेहि लिहिउ किर एउ सारु ॥४० 1 परगलिय. 2 अत्थमेई. 3 निहिणुं. 4 लीगुं. रेहिंहि. G कुसुम. 7 नलिण. 8 कुमारी. 9 सयलं. 10 सयं. One mora too few in the next pada. 11 वि. 12 खणो. 13 दीहलच्छि. 14 जिण. 15 जहिंछइं. 16 सोहगुरु. 17 अणुंदिणुं 18 सुफलिय. 19 गुह. 20 रानुसयइं. 21 अंगयसा. 22 पोच्छणय°. 23 गुढप्पण. 24 अंन'. 25 नामी. 26 वराउ. 27 लेहवाउ. 28 किय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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